सेठ गोविन्ददास के नाटक | Seth Govind Das Ke Natak

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Seth Govind Das Ke Natak by रत्नकुमारी देवी - Ratnkumari Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११९ ) एक दूसरे के ठीक घिपरीत विवेचन इस नाटक में देखते ही बनता है। उप.काल का समय है। राज्याभिपेक के लिए राम तैयार हो रहे है। उनके निकट ही सीता खड़ी है। राम भूषणों को घारण करते हुए सीता से कहने है--- “शाम---( द्वार पहन चुकने पर कुगडल पहनते हुए ) देखना हे, प्रिये, इस भारी उत्तरदायित्व को संभालने ओर अपने कतंव्य को पूर्ण करने में मे कहाँ तक क्ृतकृत्य होता हैँ । . . . वैदेही, किसी कायं का उत्तरदायित्व समालने के प्रव॑ यह काय जितना सरल जान पड़ता है उतना दायित्व प्रहण करने के पश्चात नहीं | , , फिर किसी काय को करने के पश्मनात उसके फल का शुभाशुभ प्रभाव हृदय पर पड़े बिना नहीं रहता मैथिली, आदश ऊँचा, बहुत ऊँचा है। प्रजा में कोई भी मनुष्य आध्यात्मिक, आधिदेविक, ओर आधिभीतिक दृष्टि से दुखी न रहे, अपने कतंव्य की पूर्ति के लिए राजा को अपने सवस्ब की आहुति देनी पड़े तो भी वह पीछे न हूटे, राजा के लिए कही भी, किसी प्रकार की भी, घुरी आलोचना और अपवाद न सुन ॒ पड़े। बैदेही, यह महान उच्च आदर्श है।” यही से पूर्वांध का आरम्भ होता है ओर इन्ही भावनाओं से राम के कर्तव्य पालन का प्रारम्भ होता है। राम के जीवन का उद्देश्य, उद्देश्य मे आदर्श, और इस आदश उद्देश्य के पूरा




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