तिब्बत में बौद्ध धर्म | Tabbit Main BauddhDhram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शांतरक्षित-युग श्३ हुई। सम्राट श्रौर कितने ही अमसात्य बौद्धघमकों फिर उसके पूर्व-स्थानपर प्रतिष्ठित करना चाहते थे, किंतु बलशाली मंत्री मा-शड,_ खोम्‌-प-सुक्येदके सामने किसीकी हिम्मत नहीं पड़ती ' थी। झ्ंतमे सम्राट श्रौर झन्य झअमात्योंकी रायसे मा-शड_ जीवित ही दफन कर दिया गया, श्रौर इस प्रकार बोच-धघमंकी शक्ति हमेशाके लिए क्षीण हो गई । व सम्रादकी झआज्ञासे ज्ञानेंद्र श्याचाय शांतरक्षितको बुलाने गया । झाचायके लिए सबसे बडी दिक्कत भाषा की थी; कितु कश्मीरी पंडित अनंत बहुत वर्षो तक तिब्बतमें रहनेके कारण भोट-भाषाका अच्छा ज्ञान रखने थे। श्राचाय संस्कृतसे बोलते थे, ्ौर वह उसका उल्था कर दिया करते थे । कहनेकी झावश्यकता नहीं कि भोट- सम्रादले नालंदाके इस झडद्धत विद्वान्‌का खूब सन्मान किया । ल्हासा पहुँचकर चार मास तक छाचायें राजमहलसे दश कुशल ( झुभकम ), अठारहद घातु घर द्ादशांग प्रत्तीत्यसमुस्पाद पर व्याख्यान देते रहे । सम्राट उनका बड़ा ही झनुरक्त शिष्य हो गया । इसी समय नदीकी बाढसे फड:थडः_ स्थान बह गया, लोदितिगिरि ( मर-पो-रि )पर बिजली गिरी, श्यौर देशमे ढोरोकी बीसारी फैल गई । लोगोने शोर किया, कि यह झाचाय- ' के उपदेशसे रुप हुए तिब्बतके देवताद्योके प्रकोपका फल है । लाचार इच्छा न रहते हुए भी सम्रार्‌ -झाचायंको कुछ दिनोंके लिए वापस सेजनेपर सजबूर हुए । कितने ही समयके बाद सम्रादने ज्ञानेंद्रको घम-ग्रन्थोके




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