संतों के धार्मिक विश्वास | Santon Ke Dharmik Vishwas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-सूची १७
साध्यं-- नीचहुं ऊच करे'-विपदा हरे-दर्शन-माया से रक्षा-जीवनमुक्त-
भव-पा र-बेगमपुरा-यम से रक्षा-अयोनि-प्रम रपद-ब्रह्म-रसपान-द्वे त' अभावपुर्ण-
ऐक्य-भक्ति (नाम) साधन होते हुए भी साध्य ।
साधन--भगवत्कृपा-भक्ति-भक्ति का स्वरूप-अनन्य भक्ति-ताम-महत्त्व-
जप--स्म रण--ध्यान--मन वश में--सत्संगति--सत्कर्म--झान-सेवा-साधना-पद्धति-
अष्टांग-साधना-प्रार्थंना-संयोजक सत्गुरू ।
ग्रवरोधक शक्तियाँ--माया--विकृत मन--विषय--ई द्वियाँ--क्रा म--का धिनी-
कंचन-सांसारिक सम्पत्ति-संबंध मोह-“अहं -दुगु ण एवं दुष्कमं-निदा-बाह्याडम्बर-
तीर्थयात्रा-स्नान-पूजा-दान-स्मृति-अव ण-देवालय, धर्मशाला निर्माण आदि-
अविद्या ।
सामाजिक मसान्यताएं--सामाजिक जातीय स्तर पर काय-कबीर का
सहयोग-जात-पाँत का भेद-भाव नहीं-कर्म-व्यवसाय से भाकत का कोई संबंध नहीं-
कर्मानुकूल फल्न-प्राप्ति-कममण्य-जीवन-कथनी-करनी में एकता-जीव की सतक
करना-वेद विचार-ज्ञान का महत्त्व एवं सहयोग- संतो के संत-हरिजन गांधी-वाणी
निष्कर्ष-अनुभूति सार ।
'३-धन्ना -- जीवन-वृत्त-साहित्यिक परिचय-तये पद-उसकी विचारधारा ।
४-सैन -- ऐतिहासिक जीवन-साहित्यिक परिचय-म राठी के पदों के विचा र-
ग्रंथ! में शरारती । ,
५-पीपा--व्यक्तित्व-जी वन-वृत्त-'ग्रंथ' के बाहर की वाणी-'ग्रथ/ का पद ।
६-सधना --व्यक्तित््व-नया पद-'ग्रंथ” का पद ।
षष्ठ भ्रध्याय (३४०-२३७७)
महाराष्टो संतो के धार्मिक विद्वास
नोर्मदिव - व्यक्तित्व-जीवन.वृत्त-साहित्िक परिचय ।
तामदेव की विचारधारा
ब्रह्म -- उसका महत्त्व-अ्नंत साम्राज्य-बेअत महिमा-निराकार-अनंतरूप-
सर्वेव्यापक-सर्वान्तरयायी-अजन्मा, अनादि, अ्रयोति-श्रपार, अनत-पअरतीन्द्रिय-
प्रत्येक घट में व्याप्त-सवं सष्टा-पूणां-एक-भात्र सत्य-भक्तरक्षक, उद्धारक एव तारक-
दयालु, उदार-धनी तथा एक-मा १ दाता-भक्तो के वशं मे-निरंकार, निरंजन तथा
निरबान ।
सृष्टि-- कर्ता ब्रह्म-उसी का विस्तार-पारत्रह्य कौ लीला-नियंता भी वही-
रचना क्रम-माया-नहवर संसार व सांसारिक सम्पत्ति-विश्व उसी का प्रासाद-मात्र।
जीव -- ब्रह्मोत्पन्न-उसी का प्रसार-भिन्न रूप-अनंत-ब्रह्म के बश मे-संत
का स्वरूप-जीव कु जीवन-ठाकुर का दास-निजरूप-अभेद-ऐक्य ।
साध्य- भक्तो का भी भक्त-नामदेव का न्नाम ही देव” (नाम की
साथंकता)--नाम (भक्ति)~-भव-पार--यम से रक्षा--अंत.अनुभूति--गोविद-प्राप्ति-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...