नितिनिबन्ध | Nitinibandh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध - Ayodhya Singh Upadhyay Hariaudh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[. १४ ]
तक पढता लिखता । इस दो उपरान्त अपने सित्रों से सतागम्त करता ।
बारह बजे यतकिंचित भोजन करलेता किन्तु पानो के अतिरिक्त ओर
कुछ न पोता ' तोन बजे से फ़िए अपने काम में लगता और आठ बर्जे
रात तक तत्मय रहता। फिर कुछ खाकर दश बजे सो रहता ।
पति विद्दियम ठनोय को पहद्राज्नो मेरो प्रायः यचद् कद करतो
कि आलस्य के में मतुय का वित्त श्र करनेवालो बस्तु समक्ततो
छ' | यदि मनु के चित्त को कथ्वित कार्य न रहे तो अवश्य सन निक्ष
विचारों को अपना सदआादएी बनालेगा।इव लिये जब्न सुल्य कार्य न
रहे तो मन बदलाने के लिये ऐतो बातें कप्नो चाहियें जिनसे अन्त
मे कश्चित निक्ष प्रभाव न उत्पन्न हो । এ
स्नान का प्रभाव ( असर )।
प्रत्येक प्रज्धार के जल से स्नान करने का अभिप्राय यहो है कि शरोर
में उस च्रेणो को ऊषमा झा जावे जो उच्च की सुख्य ऊझ्मा से बिभित्र है।
नहाने का प्रभाव बन करने कै- प्रथम यह जानना अवश्य है कि
शरोर की प्राक्षतिक ऊप्मा का कैसा खभोव है और यह वते प्राप्त होतो
ই खास्थ को दशा में सपुथ के शरोर को गरमों ८८ और <€ अंश
१५.
খা,
१५,
सस्थता स्थिः रखने के लिये इस भ्रण को गरमों की आवश्यकता
होती हे, भव के निकट के अत्यन्त शोतल प्रदेशों में शरोर को गरमो
८०-६ अंग पर होती है यदि इप में कुछ अंतर होता भो है तो अज्ञात
इोता है । भोतप्राय देशों में>शरोर में यह शक्ति है क्लि अपनी गस्सी
उपस्थित रखे और ऊष्ण देशों में शरोर अपनी शोतलता उपदल्ित रने
को शक्षि रखता है । इस में संदेह नहीं कि यह बात आशय को है
किन्तु इस का कारण यह है कि शरोर में ऐसो शक्ति है कि তন্বী
ग्रमो की उत्पत्ति ओर उस को हानि बराबर कर दी छातो है।
खाने के रासायनिक प्रिवत्तनों ओर शरोर के अवयवों के ऐसे हो परि-
আলা से गरसी उत्पन्न दोतो है ठीक उसी रोति से जेते कि अंगेठों में
User Reviews
No Reviews | Add Yours...