वर्द्धमान | Varddhmaan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
603
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जहाँ सूर और तुलसीके समयसे लेकर आधुनिक युग तक रामचरितमानस
सूर-सागर बुद्ध-चरित' श्रिय-प्रवास', साकेत, यरोधराः श्रौर सिद्धार्थ
लिखे गये वहाँ वद्धंमान' के लिए हिन्दी साहित्यको इतनी लम्बी प्रतीक्ला करनी
पडी । इसका मुख्य कारण यह् ह कि भगवान् महावीरकी जीवनी जिस रूपमे
जेनमगमोमं मिलती है उसमें ऐतिहासिक कथा भाग और मानवीय रागात्मक
वृत्तियोंका घात-प्रतिघात गौण है और भगवानकी साधना--मोक्ष-प्राप्तिकी
प्रयत्न-कथा ही मुख्य है। महाकाव्यके लिए जिस शगार अ्रथवा वीर रसके
परिपाक की झ्रावश्यकता है उनका ऐतिहासिक कथा-सूच या तो मूलरूपसे हं ही
नहीं या किन््हीं अंशोंमें यदि घटित भी हुआ हो तो उपलब्ध नहीं ¦
उदाहरणके लिए, दिगम्बर मान्यतानुसार भगवान् महावीरने विवाह `
नहीं किया और कूमारावस्थामे ही वैराग्य ले लिया । ब्रह्मचयके इस म्रखंड तेज-
मे उत्कट बल अ्रौर विजय तो है, पर श्णगारके रस-विलासकी भूमिका नहीं ।
महाकाव्यमें घटनाओं और भह्वनाग्रोके संघातके लिए जिस प्रतिद्वंदी और प्रति-
नायककी आवश्यकता है वह भी नहीं | फिर जल-करीड़ा, उद्यान-विहार, विवाह,
यात्रा, युद्ध और विजय-प्राप्तिके मानवीय चित्रणों द्वारा रसोंकी आयोजना-उत्पत्ति
हो तो केसे ? जैनाचार्योने प्राकृत और संस्कृतमें जब कूमारावस्थामें वेराग्य
प्राप्त करने वाले तीर्थकरों मौर महापुरुषोकी जीवनी लिखी तो श्छुंगार-सजेना
के लिए उन्हें मुक्तिको स्त्री और नायिका तथा काम या मारको प्रतिदंदी वना
कर श्रृंगार और वीर रसके उपादान जुटाने पड़े । इससे रीतिकी तो रक्षा हुई,
दब्द और अरथंका चमत्कार भी उत्पन्न हुआ; पर पाठककी अनुभूतिको उकसा
कर हृदयकों भिगोनें और गलाने वाला रस कदाचित् ही उत्पन्न हुआ ।
इस कठिन पृष्ठभूमि पर महाकवि अनूपने वद्धमान काव्य लिखा हे ।*
काव्यमें १७ सर्ग हैं और कूल मिलाकर १९९७ चतुष्पद (छंद) हैं। इस प्रकार,
ग्रन्थको महाकाव्यका प्रा विस्तार प्राप्त है। इसे हरिश्रौधजीके प्रियप्रवास'
आर कविकी अपनी कृति सिद्धार्थ के अनुरूप संस्कृत-बहुल भाषा और संस्कृत
वृत्तोमं लिखा गया है । प्रायः समूचा काव्य वंशस्थ ॒वृत्तमे हं । केवल घटलतामें
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