सच्ची शिक्षा | Sachchi Shiksha

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Sachchi Shiksha by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )रामनारायण चौधरी - Ramanarayan Chaudhari

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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरा काल २२. सोलहसे पच्चीस वर्षके समयको मैं तीसरा काल मानता हैँ । अुस कालमें प्रत्येक युवक और युवतीको अुसकी अच्छा और स्थितिके अनुसार शिक्षा मिले । २३. नौ वषके बाद आरंभ होनेवाली शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिये । यानी विगद्यार्थी पढ़ते हुओ असे अद्योगोंमें लगे रहे, जिनकी आमदनीसे शाखाका खच चरे । २४. शालामें आमदनी तो पहलेसे ही होने लगे । किन्तु श्रुरूके वषौम खच परा होने कायक आमदनी नहीं होगी । २५. शिक्षकोंको बड़ी-बड़ी तनखाहँ नहीं मिल सकतीं, किन्तु वे जीविका चलाने लायक तो होनी ही चाहियें । शिक्षकमें सेवाभावना होनी चाहिये । प्राथमिक शिक्षाके लिओे कैसे भी शिक्षकसे काम चलानेका হিনাজ निन्दनीय है । सभी शिक्षक चरित्रवान होने चाहियें । २६. शिक्षाके लिभे बड़ी ओर खर्चीली अमारतोंकी जरूरत नहीं है । २७. भप्रेजीका अभ्यास भाषाके स्मे ही हो सकता है और यसे पाग्ककममे जगह भिलनी चाहिये । जैसे हिन्दी राष्ट्रभाषा है, वैसे ही अंग्रेजीका अपयोग दूसरे राष्ट्रोक साथके व्यवहार और ब्यापारके जिमि ই । | न नै मै खी-शिक्षा ` २८. ल्लियोंकी विशेष शिक्षा केसी ओर कहौँसे शुरू हो, जिस विषयमे मैने सोचा भौर लिखा है, तो भी अिस बारेमें किसी निश्चय पर नहीं पहुँच सका हूँ । यह मेरा दृढ़ मत है कि जितनी सुविधा पुरुषको मिलती है, झआुतनी स्लीको सी मिलनी चाहिये । ओर विशेष सुविधाकी ज़रूरत हो, वहाँ विशेष सुविधा भी मिलनी चाहिये ।




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