शास्त्रसारसमुच्चय | Shastrasarsamuchchay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shastrasarsamuchchay  by शीतालप्रसाद वैध - Sheetalprasad Vaidh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शीतालप्रसाद वैध - Sheetalprasad Vaidh

Add Infomation AboutSheetalprasad Vaidh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शाखसारसमुधयः । श्ड यथा-देवकुरु भोगभूमिमें सरोचर 2, उत्तरकुरु भोग' भूमिमें सरोवर ५, दोनों ओरके दोनों भद्रशाल बनोंमें ५-प५- 'ऐसे एक मेरु संबंधी २० और पांचों सेरके १०० सरो- चर हैं ॥ १६ ॥ सदसूं कनकाचलाः ॥ १७॥ अर्थ--कनकाचरु एक हजार हैं । यथा--सीता और सीतोदा महानदियोंमें देव रु भोग- भूमि ओर उत्तरफुर भोगभूमिके २ क्षेत्र तवा इन हो सीता और, सीतोदा मददानदियोपिं पूर्व और पश्चिम भद्रशालके २: घेत्र, इन चारों देत्रेंमें पांच पंच द्रद हैं; ऐसे इन वीस द्रदोंके कितारों पर पंक्तिरुप पांच पांच कांचनगिरि हैं, ऐसे एक मेरुके २०० कांचनगिरि ओर पांचों मेरुके हू ००० कांचनेगिरि दें ॥ १७ ॥ . चलार्रिशद्ग्गिजनगाः ॥ १८ ॥ अर्थ-दिग्गज पर्वत चाठीए हैं । यथा-पूर्व भद्रशालमें 'पदमोचर' ओर' नील २ दिग्गज, देवकुरुमें 'सस्तिक' और “अंजन' २ दिग्गज, पश्चिम भद्रशालमें कुपुद और पताश्न २ दिग्गन, उत्तरकुरुमें अब- तथा और रोचन २ दिग्गज, ऐसे एक मेरु संवन्धी आठ. दिग्गज हैं । इसमकार £ पेरसंबन्धी ४० दिग्गज हुये ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now