सूरदास : एक अध्ययन | Soordas: Ek Adhyayan

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Soordas: Ek Adhyayan by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूर का कथा-संगठन १९ रहे होंगे । परन्तु इन नये प्रसंगो मे वैसी स्थूलता. नदीं . है। ये कवि के काव्य को सबसे उत्कृष्ट रूप में हमारे सांसनेः रखते हैं | इन नवीन प्रसंगों के सम्बन्ध में कई समस्या ह : (१) क्या ये प्रथमतः सूर की उपज हैं. ओर उनसे संप्रदाय मेँ आए हैं या सूर ने इन्हें उसी तरह लिखा है जिस तरह अटष्टछाप के अन्य कवियों ने इन्हें बसंत-कीतेन के लिये लिखा ? (२) यदि ये खूर की उपज हैं तो उनका मंतव्य क्‍या है? वास्तव में ये प्रसंग मौलिक हैं। साहित्य की परम्परा में पहली बार इनका दर्शन अष्टछाप के कवियों में ही होता है। लगभग सभी अप्टछाप के कवियों के पद्‌ इन पर मिलते हैं ।' जहाँ तक कह सकते हैं, ब्रज-प्रदेश मे इस प्रकार क कृष्णलीला के पद चल रहे होंगे। ऋष्ण-राधा की होली, फाग, हिंडोल ब्रज-प्रदेश में अवश्व प्रसिद्ध होंगे। इसलिये सूर ने संयोग की पराकाष्ठा चित्रित करने के लिये उनका ही रूपक ग्रहण किया । फागुक्रीडा की समाप्ति पर सूर गाते हैँ-- फागु रग करि हरि रस राख्यो। रह्यो न मन युवतिन के कामो सखा-सग सबको सुख दीनो। नर-नारी मन हरि हरि लीनो जो जेहि भाव ताहि हरि तैसे। हित को दित कटक को तैसे नद यशोदा बालक जान्यो। गोपी कामरूप कर माम्यो स्पष्ट है कि सूर ने इस सिद्धांत को कथा में ही गँथ दिया है। हो, फूलडोल सम्भव है बाद में गढ़ा गया हो । फूलडोल वल्लमकुल का अधान उत्सव है। उसका आरम्भ सूर ही की हिंडोल कल्पना से हुआ होगा। सूर ने एक सुन्दर हिंडाल-प्रसंग लिखा है, परन्तु यह फूलडोल नहीं है, विश्वकर्मा का गढ़ हुआ स्वर्॑रत्न हिंडोल है । जो हो, यह निश्चित है बल्लभकुल के नित्य और नेमित्तिक आयोजन पर सूर की कल्पना और उनके: काव्य की छाप हे । . ४




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