महावीर री ओकखाण | Mahaveer Ri Okhan

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Book Image : महावीर री ओकखाण  - Mahaveer Ri Okhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ई জী ग | 5 ५ ও. (व 1, ) मोः ৯ थू' चालतो हो | हो&-होछ मिनलां री बहोत रकम -नच्य्यन पड़बा लागा तद ग्रुजारा खातर सिनख आपस में स डता । भ्रा देख ऋषभे लोगां नँ लेती करण, लिखण-पदणं श्र वीजा कास धन्धा री सीख दीवी। मा सानीजं के ऋषम पुरुषां ने बहत्तर घ्र लुगायां र चौसठ कठ्रावां पण सिखाई । ऋषभ लुगायाँ री पढ़ाई-लिखाई रा हामी हा । भ्रापणी वेरो सुन्दरी ने आप अक ज्ञान भर ब्राह्मो ने लिपि ज्ञान सिखायो । ग्रागे जार शा लिपि ब्राह्मी लिपि रे नाम सू प्रसिद्ध हुई। इस भान ऋषय प्रजा रो पाछण-पोषण श्नर मागेदशंन घणा बरसां तांई करियो । ऋषभ प्रा सानताहा के धरम रै मारग पर चाल्यां विगर श्रातिमक सान्ति फोनो মিল । झा सोच वी झापरो बड़े पुत्र भरत ने राज रो भार सुपर खुद विरक्तष्टो'रश्रातम साधनारेमारग्‌ पर्‌ झागे वढ्या । ऋषभ चेत बद াভল ই दिन मृति दीक्षा अंगीकार करी। दीक्षा धारण करनासू पेली न्नापश्रापणौ सम्पत्ति जरुरतमंदं लोगां मे वाटी भर ञ्रा वात समभझाई के सम्पत्ति री महत्ता भोग में नीं हो र त्याग में है । मुनि वणर ऋषभ घणी कठोर तपस्या करणो सर करी। छह माहु रो श्रनसन वरत धारण करप्रभू ध्यान साधनामे लीन प्हैग्या । छह माह वीतवा पर प्रभु भिक्षा खातर गांव-गांव त्रिहारं फरता र॒या | इण समे में वी मौन रैवता हा । ई कारण लोग श्रा নী जार सकया के प्रभु ने किए चीज री चावना है । मिनख इणां भेट मे कीमती गैणांन्गाभा अरर हाधी-घोड़ा देवता पण॒ प्रभु विगर पाई चीजवसत्त लियां, पाछा फिर जावता। यू करतां-करतां छह साह श्रोरु बीतरया । एकदा प्रभु विचरण करतां-करतां हस्तिनापुर पधारिया । प्रठारो राजा सोमयश् हो । ई रो छोटो भाई श्र यांसकुमार धामिक




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