महावीर री ओकखाण | Mahaveer Ri Okhan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ई জী ग | 5 ५
ও. (व 1, ) मोः
৯
थू' चालतो हो | हो&-होछ मिनलां री बहोत रकम -नच्य्यन
पड़बा लागा तद ग्रुजारा खातर सिनख आपस में स डता ।
भ्रा देख ऋषभे लोगां नँ लेती करण, लिखण-पदणं श्र वीजा
कास धन्धा री सीख दीवी। मा सानीजं के ऋषम पुरुषां ने बहत्तर
घ्र लुगायां र चौसठ कठ्रावां पण सिखाई ।
ऋषभ लुगायाँ री पढ़ाई-लिखाई रा हामी हा । भ्रापणी वेरो
सुन्दरी ने आप अक ज्ञान भर ब्राह्मो ने लिपि ज्ञान सिखायो । ग्रागे
जार शा लिपि ब्राह्मी लिपि रे नाम सू प्रसिद्ध हुई। इस भान ऋषय
प्रजा रो पाछण-पोषण श्नर मागेदशंन घणा बरसां तांई करियो । ऋषभ
प्रा सानताहा के धरम रै मारग पर चाल्यां विगर श्रातिमक सान्ति
फोनो মিল । झा सोच वी झापरो बड़े पुत्र भरत ने राज रो भार
सुपर खुद विरक्तष्टो'रश्रातम साधनारेमारग् पर् झागे वढ्या ।
ऋषभ चेत बद াভল ই दिन मृति दीक्षा अंगीकार करी।
दीक्षा धारण करनासू पेली न्नापश्रापणौ सम्पत्ति जरुरतमंदं लोगां
मे वाटी भर ञ्रा वात समभझाई के सम्पत्ति री महत्ता भोग में नीं
हो र त्याग में है ।
मुनि वणर ऋषभ घणी कठोर तपस्या करणो सर करी।
छह माहु रो श्रनसन वरत धारण करप्रभू ध्यान साधनामे लीन
प्हैग्या । छह माह वीतवा पर प्रभु भिक्षा खातर गांव-गांव त्रिहारं
फरता र॒या | इण समे में वी मौन रैवता हा । ई कारण लोग श्रा
নী जार सकया के प्रभु ने किए चीज री चावना है । मिनख इणां
भेट मे कीमती गैणांन्गाभा अरर हाधी-घोड़ा देवता पण॒ प्रभु विगर
पाई चीजवसत्त लियां, पाछा फिर जावता। यू करतां-करतां छह
साह श्रोरु बीतरया ।
एकदा प्रभु विचरण करतां-करतां हस्तिनापुर पधारिया ।
प्रठारो राजा सोमयश् हो । ई रो छोटो भाई श्र यांसकुमार धामिक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...