शरात्-साहित्य श्रीकान्त (प्रथम पर्व) | Sharat-Sahitya Shreekant (Pratham Parv)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीकान्त ঙ समझ गया था कि स्कूलते रोलिंग फॉदकर घर आनेका रास्ता तैयार हो जानेपर फिर फाटकमस वापिस लछोटकर जानेका रास्ता प्रायः खुला नहीं रह जाता । और फाय्कका रास्ता खुला रहा या नहीं रहा, यह देखनेकी उत्सुकता भी उसे बिल्कुल नहीं हुईं | यहाँ तक कि सिरपर १०-२० अभिभावकोंके होनेपर भी, নই कोई भी, उसका मुँह किसी भी तरह फिर विद्यालयकी ओर नहीं फेर सका | इन्द्रने कलम फेंककर नावका डॉड हाथमें ले लिया | तबसे वह सोरे दिन गगामें नावके ऊपर रहने छगा | उसकी अपनी एक छोटी-सी डोगी थी। चाहें ओधी हो चाहे पानी, चाहे दिन हो चांहे रात, वह अकेला उसीपर बना रहता । कभी कभी एकाएक ऐसा होता कि वह पश्चिमकी गगाके इकतरफा बहावमे अपनी डॉगीकी छोड देता, डॉड पकडे चुपचाप बैठा रहता और दस-दस पद्रह-पद्रह दिनतक फिर उसका कुछ भी पता न लगता | एक दिन इसी प्रकार जब वह बिना किसी उद्देश्यंके अपनी डोगी बहाये जा रहा था, तब उसके साथ मिलनकी गॉठको सुदृढ़ करनेका मुझे मौका मिल्य। उस समय मेरी यही एक मात्र कामना थी कि उससे किसी न किसी प्रकार मित्रताका सम्बन्ध हृढ़ किया जाय, और यही बतलानेके लिए, मैने इतना कहा है। किन्तु जो छोग मुझे जानते हैं वे तो कहेंगे कि यह तो तुम्हें नहीं सोहता भैया ! तुम ठहरे गरीबके छडके और फिर लिखना-पढ़ना सीखनेके लिए अपना गोव छोडकर पराये धर आकर रहे दो, फिर तुम उससे मिले ही মী और मिलनेके लिए इतने व्याकुल ही क्‍यों हुए? याद ऐसा न किया होता, तो आज तुम-- । ठहरो, ठहरों, अधिक कदनेकी जरूरत नहीं है। यह बात हजारो छोगोने ভাবী হী নাং मुझसे कही है, स्वय खुद मैंने भी यह प्रश्न अपने आपसे करोड़ों बार पूछा है, परतु सब व्यथ | वह कौन था *--इसका जवाब तुममेसे कोई भी नहीं दें सकता और फिर, “ यदि ऐसा न हुआ होता तो मै क्‍या हो जाता, › इस प्रश्षका समाधान भी तुममेंसे कोई कैसे कर सकता है? जो सब कुछ जानते हैं, केवल वे ( भगवान्‌ ) ही बता सकते हैं कि क्यों इतने आदमियोकों छोडकर एकमात्र उसी इतभागेके प्रति मेरा सारा हृदय आक्ृष्ट हुआ और क्यो उस मन्दसे मिलनेके किए मेरे शरीरका प्रत्येक कण उन्मुख हो उठा | वह दिन मुझे खूब याद ই। सोरे दिन लगातार गिरते रहनेपर भी भेह वन्द्‌ प




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