सोहन काव्य-कथा मंजरी (अध्य्याय पंद्रह) | Sohan Kvya Katha Manjari [ Part -15 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नृपति ने चहुं प्ररं दूत दौड़ाये।
पर कोई भी पता नहीं ला पाये।
सागर तक सेवक जा जा करके प्राये।
कहीं कंवर को खोज नहीं वे पाये।
सेना भी कवर को ढूढ़ दृढ़ है हारी।
कर्मों की रेखा टरे कभी नहीं टारी॥ २२॥
मां की গাভী তি श्रश्नुधार ना ट्टे)
मेरे भाग्य क्यों श्राज यहाँ पर फूठे।
विना कवर के जीवन विष की घूटें।
वैभव के सव भोग रानी के छूठे।
शोक समुद्र মি ভন तात महतारी ।
कर्मो की रेखा टरे कभी नहीं टारी॥ २३॥।
बुला नजूमी उसको सब बतलाया।
खोया मेरा कंवर नहीं मिल पाया ।
चिन्ता सारी. तजे श्राप महाराया।
सकुशल कंवर श्रायेंगे उत्तर श्राया ।
तिलभर भी नहीं भूठ दो शंका निवारी ।
कर्मों की रेखा टरे कभी नहीं टारी 1! २४ ।।
हय के उपर कवरं उडा ही जाये)
लेकिन हय को नहीं रोक वहु पाये।
प्रपती भूल पर रह रहकर पछताये।
थक करके श्रव तो चूर चूर हौ जाये।
मेरी बुद्धि गई हाय तब मारी।
कर्मों की रेखा टरे कभी नहीं दारी ॥ २५ ।।
पांवों से एक कील तभी दब जाये।
नभ से गिर कर शपअ्रश्व;ध्घरा पर श्राये |
प्राति श्रते तस सेः वहु टकराये।
भयभीत कंवर था होश नहीं रह पाये ।
गिरने से मूर्छा श्राई् उसको भारी।.
कर्मों की रेखा टरे कभी नहीं टारी। २६॥
कई दिनों के वाद हश जव श्राया!
भव्य कक्ष मे पड़ा स्वयं को पाया ।
इधर उधर देखा तो सिर चकराया।
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