वासवदत्ता का चित्रलेख | Vasavdatta ka Chitralekh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्३ चासवदत्ता का चित्रालेख मैं इस कहानी को लेकर उपन्यास लिखूँ उपन्यास लिखने की प्रेरणा भी तो सुभर्म नहीं थी । इस चित्रालेख को प्रकाशित कर रहा हूँ । स्वयं में यह कहानी रोचक है चाहे वह उपन्यास के रूप में हो चाहे वह चित्रालेख के रूप में हो । हाँ चित्रालेख के रूप में बह इतनी रोचक नहीं होगी जितनी उपन्यास के रूप में क्योंकि चित्रालेख जनता की समझ में तभी पूरी तौर से श्रा सकता है जब उसका चित्र बन जाय | मैं जो इस को प्रकाशित करवा रहा हूँ उसका दूसरा ही कारण है | भारती य-फिल्म-जगत्‌ में जा चीज़ श्रत्यन्त महत्व की है श्रौर जिसकी वधिक से श्रधिक उपेक्षा की जाती है वह चित्नातेख है । शायद इसका कारण यह है कि चित्रालेख-लेखन की कला के श्रध्ययन की यहाँ कोई साधन नहीं विधिवत्‌ उसका झध्ययन होता ही नहीं । मैंने भारतीय फिल्मों की दुनिया बहुत निकट से देखी है कहीं भी चित्रालेख-लेखन का कोई विघान नहीं है । कमी-कभी तो चित्रांकन बिना चित्रालेख के ही प्रारम्भ कर दिया जाता है । चित्रांकन के समय चित्र का चित्रालेख एवं संवाद लिखे जाते हैं। श्रौर इसका परिणाम यह होता है कि चित्र बन जाने के बाद उसकी बुरी तरह कॉँड छँट करनी पड़ती है । फिल्म हमारे जीवन का एक महत्वपूण माग बन गया है श्रौर बहुत लोगों की फिल्‍मी दुनिया में श्रभिरराच है । पर हिन्दी में फ़िल्मों पर कोई पुस्तक नहीं है नवागन्ठुक फिल्‍मी दुनिया में जाकर श्रपने को खो देता है। इस पुस्तक के पढ़ने से पाठक को फिल्‍मी दुनिया की काय-प्रणालो एवं वहाँ की गति-विधि का कुछ ज्ञान हो जायगा। साथ ही इस के सहारे वह चित्रालेख के व्याकरण को भी समभने में सफल हो सकेग। |




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