वैध मासिक पत्र | Vaidh Masik Patra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्४ ऊँ चैदश र + फड़कती हुई श्रौर कोमल, स्थल चंचल चाल से चलती है। पेली नाड़ी जब तक ज्वर तीघ्र रदता है, तब ही तक चलती है-शर पाँचव' सातवें और' नरवें दिन ज्वर त्याःए' के वाद, स्वामाधिक गति से सी मन्द दो जाती है । सातवें; झाठवें, झथवा नें दिन ढेसी पसीना झा कर बहुधा एक दम उबर मोत्त हो जाता दै । ययापि यद्द उवर मोच्तरूप लत्तणु प्रगयः सब दी सस्निपातों में दोता है, तंथापि इस श्वसनक सन्निपात में विशेषकर होता है । कभी २ धीरे २ भी उ्वचर उतरा करता है । पसीने के अधिक शाने से शरीद पक दम ठंडा होजाया करता है | तथा नाड़ी भी दब जायों -करतो, है । एसी दशा में रोगी के प्राए छूट ज्ञाया करते हैं या रोगी रोग से मुक्त दोजाता है । किन्द यदि खुचिजित्सा 'दो तो, रोगी को खतरा नहीं होता है ।'फिर इस रोग से श्राणु पाकर, १६ दिन था है मास में फेफड़े के अपनी स्प्रामाविक अवस्था में पहुंचने पर) सेगी झारोग्य ोजाते हैं ॥ १३ ॥ स्ाध्यता लच्चणु। एकत: फुर्फुसे दुछ ज्वरतीज्रे रिथते घले । सम्पकू पाद्चय लब्चे सन्तव्या खुखसाध्यता ॥ १४॥ स्वेदो भ्रहो ज्वशर्तीघ्रो जरतो टु्बलस्प था । पादृचयस्प सम्पत्या सो$पि जीवेत्कथन्चन ॥ १७॥ डय सुखसाध्य कट्टलाध्य के लच्चाणु कहते हैं । पक ही तरफ मे फुफ्फुस पर श्रसर हो, ज्वर तीघ्रन हो, रोगी चलवान हो, चैथ, आप और परिचारक चहुत 'प्रच्छे दो, तो रोपी सखल्ाध्य सासता 'ादिये । झीर यॉदि रोगी ' बुड्ढ़ा या कमज़ोर दो, ज्यर तीव्र दो, . पसीना जिंयादा झाये, तो क्साध्य समभना चाहिये । यदि तीन पाद (चेघ-श्ौपघ, परिचारक ) चहुत भ्रच्छे हो, तो. ऐखा रोगी भी घचजाता है ॥ १४ ॥ प झसाध्य लक्षण । हावेच फुर्फुसौ डी समग्रों यस्प चैकूतः । घोर: दचासों भद्दी स्वेदो दुलभं तरप जी वितसू॥ है ॥ सन्दे शिव्चित्प्लपति स्वेद्रनात: घनुद्यति । चेपये ऋपादृध्च ' प्राणारतंस्पापि दुछभा; ॥ १६ ॥




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