युद्ध और शांति | Yuddha Aur Shanti

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Yuddha Aur Shanti by गुरुदत्त - Gurudutt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्घ युद्ध श्रौर शान्ति कि भारत को स्वराज्य मिलना चाहिये । कहते है कि तीन-चौधाई स्व- राज्य तो मिल भी छुका है और गाधीजी शेष एक-चोथाई के लिये रूठे हुए है। तो तुम भी समभ्रते हो कि गाधघीजी के रूठने से श्रंग्रेज यहाँ से जा रहे है। भाषा देश के सब समाचार-पत्र और नेतागण यही कह रहे है। पर मै तुमको कहता हूं कि यह इस प्रकार नहीं है जेसा ये समाचार- पत्र श्रौर नेतागण कहते हैं इनका दिमाग एक गलती कर रहा है । पंग्रेज इसलिये नहीं जा रहे कि बे देवीदयाल-जसे बनियो के नारो से भयभीत है। भ्रंग्रेज़ सेना के सिपाहियों से डरते है । वे जानते हैं कि सेनिको मे यदि देश प्रेम की भावना जागी श्रौर स्वतन्त्रता की इच्छा पैदा हो गई तो फिर वे सेमिक चर्खा चलाने तक सम्तोष नहीं करेगे । वे बन्द्रक भर तोप चलायेंगे । और सेना में देश-प्रेस केसे जागेगा ? यह सत्याग्रह श्रह्िसा शान्ति की भावना से नही अपितु देश की भावना को साथ लिये हुए सेना में भरती होने से होगा । यह पढ़े-लिखे समभदार युवकों के सेना में भरती होने से होगा । परन्तु गाधीजी के आन्दोलन से कुछ तो मिला है ? कुछ नहीं मिला । बल्कि मिलते-मिलते रुका है। जो कुछ मिलना था वह विकृत होकर ही मिल रहा है । _ जमादार की यह बात मथुरासिह को समभ नही श्राई। बह पिता का मुख देखता हुमा बेठा रहा । पिता बहुत पढ़ा-लिखा व्यव्ति नहीं था । केवल उर्दू भाषा श्रौर उसमे निकलने वाले समाचार-पत्र ही पढ़ता था । उसके पास मासिक-पत्रिका समिक झाया करती थी । यह पश्रिका सरकार की शोर से सेना तथा सेना से पेंशन-प्राप्त संनिको को भेजी जाती थी । इसके द्वारा ही उसके विचार बनते थे । साथ ही परमात्मा




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