साकेत | Saket
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
479
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम सर्ग
कोट-कलदो पर प्रणीत विहग हैं ,
ठीक जैसे सूप, बसे रग हैं।
वायुकी गति गान देती है उन्हे ,
वाँसुरी की तान देती है उन्हें।
ठौर ठौर श्रनेक अध्वरप्युप हैं ,
जो. सुसवतु के निददन-रूप हैँ ।
राघवों की इन्द्र-मैनी के बडे ,
वेदियों के साथ साक्षी से खडे ,
मुरतिमय, विवरण समेत, जुदे जुदे ,
ऐतिहासिक ब्रत्त जिनमे हैं खुदे ,
तन विद्याल कीति-स्तम्भ है ,
दर करते दानवो का दम्भ हैं।
स्वर्ग की तुलना उचित हो है यहाँ , *
किन्तु सुरसर्ति कहाँ, सरयू वहाँ *
वह मरो की मान फार उतारती »
यह यही से जीवितों को तारती !
अगूराग पुरागनाओ के घुले ,
रग देकर नीर मे जो हैं घुले ;
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