तुलसी साहिब हाथरस वाले की शब्दावली भाग 2 | Tulsi Sahib Hathras vaale Ki Shabdavali Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.19 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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२१)
रुप दे रस रहदा गंदे ॥ टेक
यह अंग अगिन जरे मन सूरख , बारु बदन बनाया वे ।
थघाया कीट करम रंजक तन ; भट्टी बुरज उड़ाया ने. ॥
उयेँ काया. महताब हवाई , जल बल खाक मिलाईँ ।
जम की जाल जबर नहिं छूदे , छूदे अंग इलाही ॥ ९ ॥
खा्बिद का कर खोज खुदी कुल , खिलकत खोज न पाया वे ।
पैदा किया खाक से पुतले , थारी यार भुलाया वे ॥
सब जहान दाजख दुनियाई ; साहिब सुधि बिसराइं ।
जब लेखा ढँँ उवाब फिरस्ते , हाजिर हास हिराईं॥ २॥
गाफिल गुनह गजब की बातें , कुछ फहमीद न लाया वे ।
आतस हुवा जिमीं जिन कीन्हा , आाब और ताब बनाया वे ॥
माठिक. मूल मेहर बिसराईं , आलिम इलम सेाहाईं ।
बदन बनाया. जिनने , उनका कुफर कहाईं ॥ ३ ॥
खिलकत फना फिरे दे में , येँ कुफरान कहाया वे ।
मिस्त राह बुजुरुग बतलावें , से कुछ ख्याल न लाया वे ॥
हकताला” कर पेच पसारा , तुलसी पकड़ मँगाईे ।
ताबा ताब गले नहीं फुरसत , मुरसिद येँ समक्ाईं ॥ 9 ॥
नाम दी रटि ले रे बंढे ॥ देक ॥
अजब खुवारी खठक खेल में , खूबी खूब बनाई वे ।
नूर जहूर हाल से वाकिफ , रहवर'ं रमक जनाई ने ॥
फादे ऋजठ फरक़ फहमीदे , इल्लति दूर बहाईं ।
कहर कुफर काफर कूँ बूका , जुलमी राह छुड़ाई॥ ९॥
श्जा मेहर मुरसिद मालिक की , चाखट चमक चिनाही वे ।
चौबारे के निकर निसाने , दीन्हा लखाईं वे ॥
अंदर अबर पार पौड़ी के , डोरी डगर लगाई ।
जो कामिल उस्ताद अरस के , असली ऐन बताई ॥ २॥
र्सकीरि स्वामी कं
ही
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