तुलसी साहिब हाथरस वाले की शब्दावली भाग 2 | Tulsi Sahib Hathras vaale Ki Shabdavali Bhag 2

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Shabdavali Tulsi Sahib हाथरस वाले Ki-2  by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्फ्ड २१) रुप दे रस रहदा गंदे ॥ टेक यह अंग अगिन जरे मन सूरख , बारु बदन बनाया वे । थघाया कीट करम रंजक तन ; भट्टी बुरज उड़ाया ने. ॥ उयेँ काया. महताब हवाई , जल बल खाक मिलाईँ । जम की जाल जबर नहिं छूदे , छूदे अंग इलाही ॥ ९ ॥ खा्बिद का कर खोज खुदी कुल , खिलकत खोज न पाया वे । पैदा किया खाक से पुतले , थारी यार भुलाया वे ॥ सब जहान दाजख दुनियाई ; साहिब सुधि बिसराइं । जब लेखा ढँँ उवाब फिरस्ते , हाजिर हास हिराईं॥ २॥ गाफिल गुनह गजब की बातें , कुछ फहमीद न लाया वे । आतस हुवा जिमीं जिन कीन्हा , आाब और ताब बनाया वे ॥ माठिक. मूल मेहर बिसराईं , आलिम इलम सेाहाईं । बदन बनाया. जिनने , उनका कुफर कहाईं ॥ ३ ॥ खिलकत फना फिरे दे में , येँ कुफरान कहाया वे । मिस्त राह बुजुरुग बतलावें , से कुछ ख्याल न लाया वे ॥ हकताला” कर पेच पसारा , तुलसी पकड़ मँगाईे । ताबा ताब गले नहीं फुरसत , मुरसिद येँ समक्ाईं ॥ 9 ॥ नाम दी रटि ले रे बंढे ॥ देक ॥ अजब खुवारी खठक खेल में , खूबी खूब बनाई वे । नूर जहूर हाल से वाकिफ , रहवर'ं रमक जनाई ने ॥ फादे ऋजठ फरक़ फहमीदे , इल्लति दूर बहाईं । कहर कुफर काफर कूँ बूका , जुलमी राह छुड़ाई॥ ९॥ श्जा मेहर मुरसिद मालिक की , चाखट चमक चिनाही वे । चौबारे के निकर निसाने , दीन्हा लखाईं वे ॥ अंदर अबर पार पौड़ी के , डोरी डगर लगाई । जो कामिल उस्ताद अरस के , असली ऐन बताई ॥ २॥ र्सकीरि स्वामी कं ही




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