राजपूताने का इतिहास | Rajputane ka Itihas

Rajputane ka Itihas by गौरीशंकर हरिचंद ओझा - Gaurishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र ७. ७५ जिस्ना, चोरदिया झादि स्थानों में प्राचीन काल के मंदिरों के भग्तावशेष :प्रीर: बावड़ियों ादि विद्यमान हैं, जिनसे प्रतीत दोता है कि प्राचीन काल पथ इलाक़ा खुससद्ध था । प्रतापगढ़ राज्य में खुदाई का काम बिल्कुल पं हुआ है श्वौर न प्राचीन इतिहास की सामग्री की खोज ही हुई है । «दि खुदाई श्ौर शोध का कार्य हो तो श्औौर भी सामग्री मिल सकती है । पर दशा में प्रतापगढ़ राज्य के सर्वोग पूर्ण इतिहास लिखने का श्रेय किसी शारों इतिदास-लेखक को ही मिलेगा, लेकिन उस समय भी मेरा यद इतपास, मुझे विश्वास है; इतिहास-लेखकों के पथ-प्रदुशंक का काम पल 1 भूल मनुष्य मात्र से ोती है । इसका में अपवाद नदीं हूं, झर :र इस्र समय मेरी बूद्धावस्था है । जो जटियां मेरी दृष्टि में छाई उनके ए + पुस्तक के झंत में शुद्धिपत्न लगा दिया गया है । श्यौर भी जो घुटियां * : नके लिए. कपालु पाठक मुभे क्षमा प्रदान करेंगे । सपमाण सूचना :::* नै पर उनका द्वितीय झावुत्ति के समय खुधार कर दिया ज्ञायगा। '' घतैमान प्रतापगढ़-नरेश महारावत सर रामसिंदजी बद्दादुर, के० ० एसू० झाई० ने राज्य में उपलब्ध इतिहास संबंधी समस्त सामग्री मेरे पाते मिजवाने की कृपा की, जिसके लिए में उनका हृदय से अल्भुय्द्दीत हूं । स्ोतामऊ राज्य के विद्यापेमी महाराजकुमार डॉक्टर रघुवीर सिंह, पम० ए०, 7: पल्दू० बी०, डी० लिट्‌० का भी में अत्यंत छाभारी हूं, क्योंकि उन्होंने पत्ते संग्रद से प्रतापगढ़ के संदेध के शाही फ़रमानों और झखबारात का पशंज्ञी खुलासा मेरे पास मिजवाने का कष्ट उठाया दे । प्रतापगढ़ राज्य सी रघुनाथ संस्कृत पाठशाला के' प्रधानाध्यापक पंडित जगन्नाथ शास्त्री पथ कामदार खासगी शाह' मन्नालाल पाडलिया भी मेरे घन्यवाद-भाजन हैं, «पर्रकि ,उनके-दारा मुझे राज्य ले इतिदास-संवंधी सामग्री एवं समय-समय पर खत्परामशे मिलता रहा है । मैं उन श्रन्थकर्ताओं का भी अत्यन्त कृतज्ञ ए, जिनकी रचनाओं का मैंने इस इतिहास के लिखने में डपयोग किया दे नर जिनका उदलेख मैंने यथास्थान टिप्पणों में कर दिया दे |




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