जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला भाग - 4 | Jain Siddhant Pravesh Ratnamala Part - 4
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.88 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र
उत्तर- (१) मेरा द्रव्य गुण पर्याय मेरा स्वद्रव्य है, इसकी झपेक्षा
बाकी सब द्रव्यो के गुण पर्यायों के पिण्ड पर द्रव्य है । २) मेरा
असख्यात प्रदेशी आत्मा स्वक्षेत्र है, इसकी श्रपेक्षा प्राकी सब
द्रब्यो का क्षेत्र परक्षेत्र है। (३) मेरी पर्यायों का पिण्ड स्व-
काल है, इसकी श्रपेक्षा बाकी सब द्रव्यो की पर्यायों का पिण्ड पर-
काल है । (४) मेरे अनन्त गुण मेरा स्वभाव है, इसकी भ्रपेक्षा
बाकी सब द्रव्यो के भ्रमन्त २ गुण परभाव हैं । फात्र जीव को
प्रथम अ्रकार कमेद विज्ञान करने से झनन्त चतुष्टय की प्राप्त
का अवकाश है ।
ग्रदन ३ २--दूसरे प्रकार का भेद विज्ञान क्या है ?
उत्तर (१) मेरे गुणों पर्यायों का पिण्ड स्वद्रव्य है, इसकी श्रपेक्षा
पर्यायों का भेद परद्रव्य है (५) शभ्रसख्यात प्रदेशी क्षेत्र मेरा
स्वक्षेत्र है, इसकी अ्रपेक्षा प्रदेश भेद परक्षेत्र है । (३) कारण
गुद्धर्याय मेरा स्वकाल है इसकी श्रपेक्षा पर्याय का भेद पर-
वाल है । (४) अ्रभेद गुणों का पिण्ड स्वभाव हैं, इसकी अेक्षा
ज्ञान दर्दान का भेद परभाव है । पात्र जोव को टूसर मकर को
भेद विज्ञान करने से अ्रमन्त चतुष्टय की प्राप्ति अवकाश है ।
प्रदन ३३--तीसरे प्रकार का भेद विज्ञान क्या है ?
उत्तर (१) अनन्त गुण पर्यायों का पिण्डरूप श्रमेद द्रव्य में हर ऐसा
विकल्प परद्रव्य है, इसकी अपेक्षा 'है सा है' वह स्वद्रव्य है ।
(३१ ग्रसख्यात प्रदेशी श्रशेद क्षेत्र का विकल्प परक्षेत्र है, इसको
भ्रपेक्षा 'जो क्षेत्र है सो है' जिसमे विकल्फका भी प्रवेश नही, बह
स्वक्षेत्र है । (३) कारण शुध्द पर्याय “भ्रभेद मैं' यह विकल्प पर-
कान है, इस की श्रपेक्षा 'जो है सो है' जिसमे विकल्प भी नहीं
है बहू स्वकाल है । (४)अभेद गुशशो के पिण्ड का विकल्प परम तर
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