जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला भाग - 4 | Jain Siddhant Pravesh Ratnamala Part - 4

Jain Siddhant Pravesh Ratnamala Part - 4 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र उत्तर- (१) मेरा द्रव्य गुण पर्याय मेरा स्वद्रव्य है, इसकी झपेक्षा बाकी सब द्रव्यो के गुण पर्यायों के पिण्ड पर द्रव्य है । २) मेरा असख्यात प्रदेशी आत्मा स्वक्षेत्र है, इसकी श्रपेक्षा प्राकी सब द्रब्यो का क्षेत्र परक्षेत्र है। (३) मेरी पर्यायों का पिण्ड स्व- काल है, इसकी श्रपेक्षा बाकी सब द्रव्यो की पर्यायों का पिण्ड पर- काल है । (४) मेरे अनन्त गुण मेरा स्वभाव है, इसकी भ्रपेक्षा बाकी सब द्रव्यो के भ्रमन्त २ गुण परभाव हैं । फात्र जीव को प्रथम अ्रकार कमेद विज्ञान करने से झनन्त चतुष्टय की प्राप्त का अवकाश है । ग्रदन ३ २--दूसरे प्रकार का भेद विज्ञान क्या है ? उत्तर (१) मेरे गुणों पर्यायों का पिण्ड स्वद्रव्य है, इसकी श्रपेक्षा पर्यायों का भेद परद्रव्य है (५) शभ्रसख्यात प्रदेशी क्षेत्र मेरा स्वक्षेत्र है, इसकी अ्रपेक्षा प्रदेश भेद परक्षेत्र है । (३) कारण गुद्धर्याय मेरा स्वकाल है इसकी श्रपेक्षा पर्याय का भेद पर- वाल है । (४) अ्रभेद गुणों का पिण्ड स्वभाव हैं, इसकी अेक्षा ज्ञान दर्दान का भेद परभाव है । पात्र जोव को टूसर मकर को भेद विज्ञान करने से अ्रमन्त चतुष्टय की प्राप्ति अवकाश है । प्रदन ३३--तीसरे प्रकार का भेद विज्ञान क्या है ? उत्तर (१) अनन्त गुण पर्यायों का पिण्डरूप श्रमेद द्रव्य में हर ऐसा विकल्प परद्रव्य है, इसकी अपेक्षा 'है सा है' वह स्वद्रव्य है । (३१ ग्रसख्यात प्रदेशी श्रशेद क्षेत्र का विकल्प परक्षेत्र है, इसको भ्रपेक्षा 'जो क्षेत्र है सो है' जिसमे विकल्फका भी प्रवेश नही, बह स्वक्षेत्र है । (३) कारण शुध्द पर्याय “भ्रभेद मैं' यह विकल्प पर- कान है, इस की श्रपेक्षा 'जो है सो है' जिसमे विकल्प भी नहीं है बहू स्वकाल है । (४)अभेद गुशशो के पिण्ड का विकल्प परम तर




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