भरतेश वैभव (भाग - 2) दिग्विजय | Bharatesh - Vaibhav (bhag - 2) Dikvijaya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इसलिये उसे. माताजी को छेजाने का अधिकार हैं ।
भ माताकी आज्ञाके अनुवतीं हं । सतुश्रीकी आश्नका सदा पालन
करना मैं पना धर्म समझता ই | पूज्य माता ही मुझे हमेशा
सम्मार्गका उपदेश देती रहती हैं | शिक्षा देती है, भें मातार्जाको कुछ भी
कह नहीं सकता। भाई की इच्छा हो तो লই केजवि | भे इसपर क्या कहूँ
हते सुनकर ग्रणयचने फिर कहा कि स्वामिन् ! आपने जता
विचार प्रकट किया उसी प्रकार आपनो महोंदरने नी कहा था कि
इस कामके ढिये पूछने की क्या जरूरत है ? परतु उनसे मैंने निवेदन
किया कि यह ठीक नहीं है । सूचना तो जरूर देनी ही चाहिये ।
বাতির खासकर आपको सूचित करनेके ভি में सांग द्रं
भरतजी प्रणयचद्रकी वात सुनकर मन मनम ही कुछ हंसे व कदने
कग कै प्रणयचेन्द्र ! तुम बहुत बुद्धिमान् हो । तुम्हारे क्रतन्यपर मुझे
बडी प्रसन्नता हुई | तुम बाहुबली के पासमे रहो ऐसा कहकर उसको
उत्तम वस्र आमूप्रणोको दिया | प्रणयचन्द्र मी भरतजी को प्रणाम कर
वपे निकल गया |
प्रणयचन्द्र के बाहर जानेके बाद राजा भरत बाहुबरलीका दृत्तीपर
मन मनम ही कुर हंसे । फिर प्रकटरूपसे वुद्रिसागग्से कहने खगे करि
धुद्धिसागर ! देखा ए मेरे माकी उदण्डता को तुमन देखी न ? मने
कुछ मायाचार रखकर यहां आना नहीं चाहता है | इसीलिये बहाना-
नाजी बनाकर इते भेजा है, वह मी जानन सुनने का बहाना है | क्वा
ही अच्छा उपाय ६। उसे में कामरेव है इस वातका अभिमान है।
वह यहद्द समझता है कि उसके बराबरी करनेवाले कोई नहीं है | इसीको
हुण्डावसपिणी का प्रभात कहते है |
प्रणयचंद्रने असली बातकों छिपाकर रंग चढ़ाने हुए बातचीत की |
में इत बातको अच्छी तरह जानता है कि भाई बाहुबली मर प्राति
भाईके नाते माक्ति नहीं करेगा, उसकी मर्जी, मे ज्या करू :
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