विचार का अनुबंध | Vichar Ka Anubandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युवकों का दायित्त-१ : ७ हो गया | किन्तु 'ओरा' अभी सक्रिय है तो आदमी मरा नहीं है । दो दिन बाद वापस जी सकता है। आपने पढ़ा होगा कि रूस में छह मृतकों को धुनर्जीवित कर लिया गया है। आप ऐसी घटनाएं पढ़ते होंगे कि दाह-संस्कार के लिए श्मशान ले जाया गया और वहां जाकर बह जी उठा | यह कोन जीता है ? सचमुच मरा नही आदमी | मरता है तीन दिन के बाद । जब उसकी ओरा नप्ट हो जाती है, उसका आभामंडल लुप्त होता है, तव आदमी मरता हैं। पहले आदमी मरता नही है । ये सारी बातें वर्तमान युग की हैं। में आपको यह भय नहीं दिखाऊंगा कि आप ऐसा करेगे तो नरक में चले जाएंगे। आपको ऐसा प्रलोभन भी नहीं दूंगा कि यह करेंगे तो स्वर्ग में चले जाएंगे। आप नरक में जाएं या नहीं, मुझे इस वात से कोई मतलव नहीं। आप स्वर्ग में जाएं या नही, मुझे इस बात से भी मतलब नहीं। किन्तु आप यदि बुरा विचार करेंगे तो आपको वर्तमान में उसका थुरा फल मिल जायेगा, यह बतलाने के लिए मैं आज भी तैयार हूं और मैं आपको यह चता सकता हूं कि इस आदमी ने किस काम का क्या परिणाम अर्जित किया है ? यह मूल्यों के परिवर्तन का युग है। हर क्षेत्र में मूल्यों का परियर्तन हुआ है। सामाजिक क्षेत्र में, बाथिक क्षेत्र में, राजनैतिक क्षेत्र में और घामिक क्षेत्र मेंभी मूल्यों का परिवर्तन हो रहा है। इस वदलते हुए मुल्यों की सीमा में युवकों का क्या दायित्व है, इस पर भी मैं थोड़ी-सो चर्चा करूंगा । हम घामिक हैं और एक ऐसे दर्शन में विश्वास करते हैं जो अपनी हेनुवादिता और वेज्ञानिकता के कारण सारी दुनिया में प्रसिद्ध हो रहा है। जिम दर्शन के नीतिवाद और प्रत्यक्ष अनुभूति का दार्शनिक जगत ने सबसे अधिक समर्थन किया है, उस दर्शन मे हम विश्वास करते हैं । हमें प्रवाह- वादी नही होना चाहिए | प्रवाह के पीछे नही पड़ना चाहिए। प्रवाह का विरोध भी नहीं करना है, उसे देखना है, समझना है और उसका अध्ययन करना है। किन्तु प्रवाह में वह नहीं जाना है। इसलिए दो-तीन बातें मैं अपके सामने प्रस्तुत करता हूं।




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