शिक्षा-मनोविज्ञान तथा प्रारंभिक मनोविज्ञान | Shikhsha Manovigyan Tatha Prarambhik Manovigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि विद्यार्थी के मन पर किताबों का बोझ लादने के बजाय उसके मन का ऋमिक विकास हो तो कहीं शिक्षा का सल-मंत्र नहीं है? ये दो बातें इन्द्रिय- ययायवाद (8613९ रच्छ) की निचोड़ थीं, और इन्हीं दोनों का विकास होते-होते आज शिक्षा-विज्ञान इतनी उन्नति तक पहुँचा हैँ । इसमें... सन्देह नहीं कि शिक्षा-मनोविज्ञान का प्रारम्भ इच्िय-यथार्थवाद--के-साथ-ही समझना चाहिए, परन्तु अभी सन्रह॒वीं इताव्दी सें जब मनोविज्ञान रोही 27, बहुत साधारण अवस्था थी, शिक्षा- कोमेतियस मनोविज्ञान की उन्नत अवस्था तो कहाँ (१५९२-१६७०) পট পসরা এন १६२६) तथा कोमेनियस (१५९२-१६७० ) मान जाते हू । मनोमिज्ञान तथा शिक्षा का संबंध--............. जसा जभौ कहा गया है, इन्द्रिय-ययार्यवाद' ने शिक्षा के क्षेत्र में उचल-पुथलू. मचा दी। अब तक अध्यापक के लिए भिन्न-भिन्न विययों का अगाघ पंडित होना काफ़ी समझा जाता था। यह लूुंटिन का पंडित हो, प्रीक का विह्ान्‌ हो, गणित में पारंगत हो, भूगोल का आचार्य टो, चस, काफ़ी था। अब तक হাহা কষা মহান “হাহা के ही हाथ में था, उसमें चालक को फोई न पूछता था। यह नहीं समझा जाता था कि अगर शिक्षक! विद्वान तो है, परन्तु वालका जी प्रकृति से, उसकी मानसिक रखना से परिचित नहीं है, तब भी वह उत्तम शिक्षक का काम कर सकेगा था नहों? हइन्द्रिय-ययार्थवादो ने जहाँ ऊौर घाहत-फ्छ किया, घहाँ शालकों के मनोदितान की तरफ़ भी शिक्षा-विज्ञों फा ध्यान आदा- दत किया। दश्िप-पधार्थवाद! में शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश करणे पासा




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