जैन दर्शन | Jain Dharashan Vol-1 Year 3(1635) Ac 2428
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
834
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)স্বত্ব লাজ
(गह्य )
( ले० श्रोमान बाबू सूर अमल जी पाटणी )
उपयार करते महीनों व्यतीय हो गये । कोई
नतीजा नहीं । ज्यों २ दथाकी मर्ज बढ़ता ही गया।
डॉक्टर ने कहा, अब आप किसी दूसरे बेच, हकीम,
अथवा डाक्टर से खिकित्सा करायें तो उचित
होगा। में शक्ति भर प्रयत्न कर खुक़ां, अब अधिक
ओषधियों में आपके पेसे खर्य करवाना ठीक प्रतीत
नहीं होता । बक बात यह भी है कि इस तरह के
रोगों का इलाज ओवशियों से नहीं होता । अब तो
आपको केवल प्राकृतिक जीवन व्यतीत करना
चाहिये ।
राजेश्वर ने कहा, साहब ! आप क्या कह रहे
हो | आपकी इस सम्मति का तो यह भर्थ होता है
कि अब में न बचूंगा। क्या मेरा रोग अखाध्य है ।
यदि ऐसा था तो आपने पहले ही क्यों न कह दिया ।
पानी के समान हजारों रुपये बहा देने के बाद अब
ठीक परवाह के बीच मुके इस असहाय अवस्था में
आप छोड़ रहे हैं, यद तो किसो भी तरह चित
नहीं है। आपकी ओ फीस बाकी है कह सब मेरी
मेना के जेवर बेच कर दे, दी जायगी । अब इस
अवस्था में कोई चिकित्सक मेरा इलाज करना कैसे
स्दोकार करेगा। क्योंकि फीस देने के लिये तो पक
भी पाई नहीं है। ध्रापके गत मास तक के दो हजार
रुपये तो दे ही दिये है, में भापको विभ्यास दिलाता हैं
कि में आपकी पाई २ भद्ा कर दूंगा । डाक्टर शर्मा ने
इन बातों का कोई जवाब नहीं दिया। यह कह कर
অত दिया कि कां ऋते २ बहुत देर हो गई, तुम यक
गये होगे झोश मुझे भी कई रोगियां को देखना अभी
बाकी है ।
डाफ्टर साहब के चले जाने के बाद राजेध्यर
बिज्षिप्त सी हो गया। रूत्यु का भय प्राणी के लिये
सबसे अधिक अममुरूमय है। चाह जीवन कितना ही
यातनामय क्यों न हों कभी कोई मरना पसंद न
करेगा । यद्यपि प्रत्येक जीवन धारण करने बाला
अवश्य मरता है, यह बात सूर्थ के प्रकाश के समान
स्य है फिर भी इसका नाम सुनते ही मनुष्य भय
से कांपने लगता है । राजञेष्वर को भी यही भवस्था
हुए । उसका জীঘা शरीर मृत्यु भोर अपनी भसहाय
पत्नी का विवार कर कापने लगा । जब वह कालेज
में पढ़ता था तब यद्यपि उसने वर्षो तक फिलासफी
का अध्ययन किया था। पर उस समय के अच्य-
यन ने इस दुःखावस्था में उस को कुछ मो सहायता
न पहुँचाई । शेखचिली के समान कई तरह के सार-
होन बियार करते २ करोब १० बञ गये ।
मेना ने आ कर कहा १० बज गये हे, भब दवा
ले लेना चाहिये। पर इस प्रश्न का राजेध्वर ने कुछ
भी जवाब नहीं दिया। मानो ऐसा मालूम होता था
जैसे उसने घुना ही न हो ।
आपका किधर भ्यान है । मेने कया का ? क्या
छुना है ' मेंना बोली | तब राजेश्वर ने जवाब
ভি देर भरे पास बेड आवो । मैं तुम्हें
कुछ कहना चाहता है} यदि तुम धये रख
कर युना चाहो तो कह दू । नहीं तो कं
महीं कहना टै ।
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