सुमन-संचय | Suman-sanchay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सूर्यकान्त शास्त्री - Suryakant Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
वास्तव में उपन्यासं॑ तथा आख्यायिका के मूल्तत्त्व
एक हैं। अतः उन पर संक्षिप्त विचार
वृत्तात्मक साहित्य करना आवश्यक प्रतीत होता है ।
के अंग वृत्तात्मक कान्य के निम्नलिखित £ तच
होते ই:
१, उपन्यास-वस्तु = पुटि
२. पात्र
३. कथापकथन
४. देशकाल = वातावरण
५. चटी
६. उद्देश्य
१. उपन्यास-वस्तु अथवा पट उन समस्त घटनाओं
की व्यवस्थित समष्टि ह, जिनका दशन ह्मे उपन्यास या
कथा में होता है; अर्थात्ू-त्रे घटनाएँ जो सहन या
संपादित की जार्ये।
२. इन बातों को सहते अथवा करते हुए, इनकी
अखला को स्थिर करने वाले मनुष्य पात्र कहते हें ।
३. पात्रों के पारस्परिक वार्ताढाप को कथापकथन
कहते हैं । कथोपकथन का चरित्र-चित्रण के साथ घनिष्ठ
संबंध है ।
४. ये व्यापार तथा घटनाएँ किसी रूमय या स्थान में
होती हैं, जिसमें और जहाँ पत्रों को अपना कार्य करना
और सुख-दुःख भोगवा पड़ता हैं। इसे देशकाछ अथवा
वातावरण कहते हैं ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...