सुमन-संचय | Suman-sanchay

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Suman-sanchay by सूर्यकान्त शास्त्री - Suryakant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) वास्तव में उपन्यासं॑ तथा आख्यायिका के मूल्तत्त्व एक हैं। अतः उन पर संक्षिप्त विचार वृत्तात्मक साहित्य करना आवश्यक प्रतीत होता है । के अंग वृत्तात्मक कान्य के निम्नलिखित £ तच होते ই: १, उपन्यास-वस्तु = पुटि २. पात्र ३. कथापकथन ४. देशकाल = वातावरण ५. चटी ६. उद्देश्य १. उपन्यास-वस्तु अथवा पट उन समस्त घटनाओं की व्यवस्थित समष्टि ह, जिनका दशन ह्मे उपन्यास या कथा में होता है; अर्थात्‌ू-त्रे घटनाएँ जो सहन या संपादित की जार्ये। २. इन बातों को सहते अथवा करते हुए, इनकी अखला को स्थिर करने वाले मनुष्य पात्र कहते हें । ३. पात्रों के पारस्परिक वार्ताढाप को कथापकथन कहते हैं । कथोपकथन का चरित्र-चित्रण के साथ घनिष्ठ संबंध है । ४. ये व्यापार तथा घटनाएँ किसी रूमय या स्थान में होती हैं, जिसमें और जहाँ पत्रों को अपना कार्य करना और सुख-दुःख भोगवा पड़ता हैं। इसे देशकाछ अथवा वातावरण कहते हैं ।




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