विधवोद्वाहमीमांसा | Vidhvodwahmimansa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
132 MB
कुल पष्ठ :
293
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 विधवा-विवाह सीना । _
ভাল जादा है ओर इसके अमाव में संरक्ष और অনু व्र मी काटि कौ
सरह खश्छता हे । पपत्यम्रोम कौ सदहिमा अचिन्त्य अर अवण
` नीयंदै! बड़े बटे उपि सुनि भी उसका वजन कहते करते थक्र गय्ने हैं
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वष्यजन्म হ্বান্ছত जिन्होंने इस प्रेमपीश्रष का पान नहीं कित्रा वे या तो
योगी हैं या पशु । है ০8725
अब प्रश्न यह है कि यह दाःस्पत्यप्रे म जो विवाह का জঙ্গীর ত্য
ओर गाईस्थ्य जीवन का জহর ই, কলা তথা में कब ओर क्योंकर रह...
सकता है ? संसार से प्र म का आधार केवल एक वस्तु है, जिसको समता `
कहते हैं । सहानुभूति विषमता में भी होती हे पर प्र मलता मवत्र समता ५
की टह्दी में ही फैलती है विषमता की ऊंची नीची भूमि में डसे फैलने
का अवकाश ही नहीं मिलता । मन का धर्म है कि बह अनुकूल वस्तु को `
. पाकर प्रसन्न और प्रतिकूछ से अप्रसन्न होता है! अनुछूछता बिना समता
` का आधार पाग्रे ठहर नहीं सकती, वह विषप्नता से उतनी हो दूर भागती `
৪ है, जितनी कि पर्वत की विषमभूमि से कोई नदी । भय या आतढ़ु से हे |
` पग्रंम नहीं, किन्तु उद्ेंग उत्पन्न होता है। जो लोग अपने घवसद, बलू- 1
मद या घर्ममद से इस प्राकृतिक नियम का उ्लंबन करके असमानों सें টু
7 मैत्री स्थापन करना चाहते हैं, वे वास्तव में मित्रता को शत्रुता के रूप में...
.. परिणत करना चाहते हैं जैसा कि किसी कवि ने कंहा है :-- ४
सरख्योः सखि सल्यमुदीरितं तरख्योघरनैव न जायते ।
यदि भवेतररे सररेऽथवा न चिरमस्ति धनुः रारयोरिवि ॥&
दौ सरल ( सीधे ) व्यक्ति या पदार्थों में मित्रता या मेह हो सकता
টা हैः तररु (टेढा ) मे नहीं । यदि खींच तान कर कोई टेढ़े ओर सीधे में
मेल करना चाहे तो वह धनुष ओर बाण के समान क्षणिक होगा ।
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