विधवोद्वाहमीमांसा | Vidhvodwahmimansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 विधवा-विवाह सीना । _ ভাল जादा है ओर इसके अमाव में संरक्ष और অনু व्र मी काटि कौ सरह खश्छता हे । पपत्यम्रोम कौ सदहिमा अचिन्त्य अर अवण ` नीयंदै! बड़े बटे उपि सुनि भी उसका वजन कहते करते थक्र गय्ने हैं এ श ५० চু ज ह रे গা, वष्यजन्म হ্বান্ছত जिन्होंने इस प्रेमपीश्रष का पान नहीं कित्रा वे या तो योगी हैं या पशु । है ০8725 अब प्रश्न यह है कि यह दाःस्पत्यप्रे म जो विवाह का জঙ্গীর ত্য ओर गाईस्थ्य जीवन का জহর ই, কলা তথা में कब ओर क्योंकर रह... सकता है ? संसार से प्र म का आधार केवल एक वस्तु है, जिसको समता ` कहते हैं । सहानुभूति विषमता में भी होती हे पर प्र मलता मवत्र समता ५ की टह्दी में ही फैलती है विषमता की ऊंची नीची भूमि में डसे फैलने का अवकाश ही नहीं मिलता । मन का धर्म है कि बह अनुकूल वस्तु को ` . पाकर प्रसन्न और प्रतिकूछ से अप्रसन्न होता है! अनुछूछता बिना समता ` का आधार पाग्रे ठहर नहीं सकती, वह विषप्नता से उतनी हो दूर भागती ` ৪ है, जितनी कि पर्वत की विषमभूमि से कोई नदी । भय या आतढ़ु से हे | ` पग्रंम नहीं, किन्तु उद्ेंग उत्पन्न होता है। जो लोग अपने घवसद, बलू- 1 मद या घर्ममद से इस प्राकृतिक नियम का उ्लंबन करके असमानों सें টু 7 मैत्री स्थापन करना चाहते हैं, वे वास्तव में मित्रता को शत्रुता के रूप में... .. परिणत करना चाहते हैं जैसा कि किसी कवि ने कंहा है :-- ४ सरख्योः सखि सल्यमुदीरितं तरख्योघरनैव न जायते । यदि भवेतररे सररेऽथवा न चिरमस्ति धनुः रारयोरिवि ॥& दौ सरल ( सीधे ) व्यक्ति या पदार्थों में मित्रता या मेह हो सकता টা हैः तररु (टेढा ) मे नहीं । यदि खींच तान कर कोई टेढ़े ओर सीधे में मेल करना चाहे तो वह धनुष ओर बाण के समान क्षणिक होगा ।




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