साहित्य की चेतना | Sahitya Ki Chetna

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : साहित्य की चेतना  - Sahitya Ki Chetna

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विद्यानिवास मिश्र - Vidya Niwas Mishra

Add Infomation AboutVidya Niwas Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सस्क्ृत-साहित्य 3 दृष्टि, सामरस्य सिद्ध वस्तु नही निरन्तर साध्यवस्तु है श्रौर यह सामरस्य प्रकृति ओर मनुष्य की निर्मिति, प्राकृतिक परिवेश रौर सामाजिक परिवेश दोनो से अभीष्ट है। सधर्ष के लिये स्थान हमारे चिन्तन में है, पर वह चिन्तन परिवेद्ञ से नही परिवेश के अधूरे ज्ञान या अज्ञान से है। सामरस्य वस्तुतः तादात्म्य के लिये भावनात्मक प्रयत्न है ! इसी को साहित्य मे भक्ति की साधनामे म्रौरकला में मिथुनीभवन के हारा व्यक्त किया गया है । छठी विशेषता है स्वातत्य की परिकल्पना । स्वातंत्र्य का श्र्थ पर का लोप नही स्व का विस्तार है। स्वतत्रता की कामना बौद्धिक ताटस्थ्य की कामना नही 'स्वात्मायतनविश्वान्तप्रतिभा' के प्रस्फुटं की कामना है। अन्तिम विश्येषता है परोक्षप्रियता । ब्राह्यणो मे देवताओं को परोक्ष प्रिय कहा गया है । जिस अकार यज्ञ का पुष्करपर्णा वन- হননি जगत्‌ का पुष्करपर्ण नही, उसी प्रकार भारतीय कला का कमल ऐन्द्रिय श्रनुभव का कमल नदी, यह्‌ कमल कुमारस्वामी के शब्दो मे श्रधिदेवत है, प्रत्यक्ष नही । सस्कृत में प्रतीकवाद अर्थ का द्वार है और साहित्य का प्राण है! वह अपने से साध्य नही । संस्कत-सादित्य इसी समुदाय का जातीय बोध है । इस समुदाय की उदार दुष्ट ही सस्कृत-साहित्य को एक ऐसी विशालता और एक ऐसा गाश्वत मूल्य प्रदान कर सकी है, जिसके कारण वह्‌ हमारी समग्रता का-मात्र एकता का हीः लही---आज भी प्रमाण है | इस साहित्य की आधार-भूमि ही समूचे भारतीय” साहित्य की तमाम विजातीय प्रभावों के बावजूद आधार-भूमि है । सस्क्ृत साहित्य के मूलभूत आ्राधार को हम पाँच मुख्य खडो मे विश्लेषण करके देख सकते है | पहला आधार है जगत के बारे में विशिष्ट सम्पृक्‍त पर स्वतन्त्र दृष्टि | सस्क्ृत साहित्य मे वस्तु जगत्‌ का दर्शव किसी एक भरोखे से करते का यत्न नही है । वस्तु जगत्‌ जिस रूप में अनुभव करने वाले रचता- कार या सहृदय के मन मे है उसी रूप में साहित्य में अभिव्यक्त किया गया है । साहित्य का जगत्‌ न तो काल्पनिक है न वास्तविक । वह वस्तुत आनुभाविक ই. यही नही, वल जगत्‌ कै प्रनुभूत होने पर नही, अनुभविता के उस जगत्‌ मे अधिष्ठित होने पर है । यही कारग॒ है कि कभी-कभी जगत्‌ का चित्र वहतः




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now