कविवर डाo रामकुमार वर्मा और उनका काव्य | Kavivar Dr. Ramkumar Verma Aur Unka Kavya

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Book Image : कविवर डाo रामकुमार वर्मा और उनका काव्य  - Kavivar Dr. Ramkumar Verma Aur Unka Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९६ रहस्यवाद का अध्ययन प्रस्तुत करने के लिए आलोचकों को छायावाद ने ही आकर्षित किया पर वास्तव में ऐतिहासिक हृष्टि से रहस्यवाद का स्थान छायावाद से बहुत पहले आता है। हिन्दी साहित्य में सबं-प्रथम इसे अवतरित करने का श्रेय मध्य युग को ही प्राप्त होता है जहाँ सिद्ध सम्प्रदाय ओर नाथ पंथ ने इसकी राह प्रशस्त कर सन्त कवियों के लिए इस पथ को उन्मुक्त कर दिया था । वसे सगुण भक्तिमे भी कही-कटी रहस्य-मावना के दर्थन होते है पर रहस्यवाद का मुर आधार निर्गुण ब्रह्म ही है। निग्ुण में उस परोक्ष सत्ताका स्वरूप अनिश्चित होने के कारण अपने में स्वयं एक रहस्य बना रहा है अतः निर्मुणोपासना में रहस्यवादी भावना का समावेश भी सहज भाव से हो गया है। जीवात्मा की परमात्मा से यह प्रणयानुभूति सहज अभिव्यक्ति पाने में असमर्थ होकर प्रतीकात्मक रूप में अभिव्यक्त हुई ओर साहित्य में रहस्यवादी भावधारा का जन्म हुआ | अपने मनोभावों को, अपने को. अभिव्यक्त करने के लिए कवि के पास कोई और चारा था भी नहीं, अतः उसे विवश होकर प्रतीकों की शरण लेनी पड़ी। कविवर बच्चन ने वेरिस : पेस्टरनाक की उक्ति--प्रतीक अहं की कारा से निकलने के द्र है?, को प्रतीक-पद्धति को स्पष्ट करने के लिए अपनाते हुए कहा है, ऐसी स्थिति की अभिव्यक्ति मे प्रतीको की माषा स्वाभाविक होती है। प्रतीकों से कवि का कितना तादात्म्य है यह भावों की तीव्रता पर निर्भर होगा ।*१ वसे छायावादी तथा रहस्यवादी रचना में आत्मनिष्ठता समान है पर छायावाद में वह लछौकिक रंग से पगी हुई है तो रहस्यवाद में आध्यात्मिक रंग से । अतः हम कह सकते हैं कि छायावादी अनुभूति का. मूक आलम्बन हृदय के बाहर की वस्तु होता दै पर रहस्यात्मक अनुभूति का आकुभ्बन व्यक्तं जगत्‌ मे खोजना सम्भव नहीं, वह मन कीदहीव्स्तु जम কপার १. कवियों में सोम्य संत--हरिवंशराय बच्वन-शृ् १३९॥ ` | | ८




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