मंगलाचरणम् | Mangalachranm

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mangalachranm by नीलकंठ - Neelkanth

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नीलकंठ - Neelkanth

Add Infomation AboutNeelkanth

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
~ परिडत माधवप्रसादजी मिश्र जो ढोंग होता है, उसके वह विरोधी थे! श्रुति-स्छति-पुराण- प्रतिपाद्य सनातन धर्ममें उनकी पूरी आस्था थी और उसके वह बड़े जबद॑स्त प्रतिपादक थे। उनके प्रयलसे देशमें कितनी ही सनातन घमंसभाएं' प्रतिष्ठित हुई थीं हरियाना प्रान्तमें जिन लोगोंने सती-धर्मके विपरीत विश्ववा- विवाह कर हिन्दू-समाजकी पवित्रताकी नष्ट करना चाहा था, पञश्चायती-संगठन द्वारा उनके उस दुस्साहसकों तोड़ना मिश्रजी जेसे शक्तिशाली व्यक्तिका ही काम था। भिवानीकी धमंसभाके आदि संस्थापक मिश्रजी ही थे। पुराने और नये भारत-घर्म-महा- मण्डलके नेताओंसें आप मुख्य थे। महामणडछरूकों विधि-वद्ध करानेमें मिश्रजीने जो अविराम परिश्रम किया था, उसे आज महामण्डर चाह भूर जाय, किन्तु सनातन-धर्मीं संसार सदा स्मरण रखेगा । उस समय महामरुडरका एक पान भी मिध्रजी- की सम्मति बिना नहीं हिलता था। खधर्म और ब्राह्मण जातिके प्रति लोगोंके उपेक्षाके माव देख कर सं० १६६० में कलकत्तेमें मिश्रजीने अपने मित्र प० कन्हेयालालजी गोपालाचार्य, प० शंभू- रामजी पुजारी, प० भूरालालजी मिश्र, प० बाल्मुकुन्दजी पुजारी प० केदारनाथजी बावलिया, प० डमाशडुरजी बेदपाठी, प० मिश्र, प० श्रीनारायणजी वेद्य, प० बालमुकुन्द्जी वेद्य प० हीरालालजी शर्मा और प० शमचन्द्रजी जोशी प्रमुर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now