मंगलाचरणम् | Mangalachranm
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
108 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~ परिडत माधवप्रसादजी मिश्र
जो ढोंग होता है, उसके वह विरोधी थे! श्रुति-स्छति-पुराण-
प्रतिपाद्य सनातन धर्ममें उनकी पूरी आस्था थी और उसके वह
बड़े जबद॑स्त प्रतिपादक थे। उनके प्रयलसे देशमें कितनी ही
सनातन घमंसभाएं' प्रतिष्ठित हुई थीं
हरियाना प्रान्तमें जिन लोगोंने सती-धर्मके विपरीत विश्ववा-
विवाह कर हिन्दू-समाजकी पवित्रताकी नष्ट करना चाहा था,
पञश्चायती-संगठन द्वारा उनके उस दुस्साहसकों तोड़ना मिश्रजी
जेसे शक्तिशाली व्यक्तिका ही काम था। भिवानीकी धमंसभाके
आदि संस्थापक मिश्रजी ही थे। पुराने और नये भारत-घर्म-महा-
मण्डलके नेताओंसें आप मुख्य थे। महामणडछरूकों विधि-वद्ध
करानेमें मिश्रजीने जो अविराम परिश्रम किया था, उसे आज
महामण्डर चाह भूर जाय, किन्तु सनातन-धर्मीं संसार सदा
स्मरण रखेगा । उस समय महामरुडरका एक पान भी मिध्रजी-
की सम्मति बिना नहीं हिलता था। खधर्म और ब्राह्मण जातिके
प्रति लोगोंके उपेक्षाके माव देख कर सं० १६६० में कलकत्तेमें
मिश्रजीने अपने मित्र प० कन्हेयालालजी गोपालाचार्य, प० शंभू-
रामजी पुजारी, प० भूरालालजी मिश्र, प० बाल्मुकुन्दजी पुजारी
प० केदारनाथजी बावलिया, प० डमाशडुरजी बेदपाठी, प०
मिश्र, प० श्रीनारायणजी वेद्य, प० बालमुकुन्द्जी
वेद्य प० हीरालालजी शर्मा और प० शमचन्द्रजी जोशी प्रमुर
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