महापाप | Mahapap
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52 MB
कुल पष्ठ :
233
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६. `
गोरी का सामल पमे उसने खद-दी आकर
से माफ़ो माँगी, अपना अपराध स्वोकार किया, घर्टों
बैठा रोता रहा, ओर आइन्दा कोई शिकायत न देने की `
क्स्म खाई । वह दिन था, ओर आज है सात महीने
बीते- कभी तो उसने प्रमाद नदीं किया, कभी शराब से .
बेहोश नहीं हुआ, ओर हमेशा, हर-काम चुस्तो ओर लगन
के साथ करता रहा | उस दिन उसकी ओरत कहती थी, कि
अब उसमें ज़मीन-आस्मान का अन्तर होगया है। बताओ, `
अब जब उसने अपना इतना सुधार कर डाला है, तो मैं रु
उसे ऐसी कड़ी सज़ा देतो अच्छी लगूँगी ? इसके अतिरिक्त .
में तो ऐसे आदमी को सिपाही बनाना पाप सममभती हूँ, जो.
पाँच बच्चों का बाप हो; ओर अकेले जिसपर सब के पालन...
-का भार हो ! “नहीं, ईंगर, अब इस बारे में तुम कुछ
कहो-ही मतत 1. | ১ শা
' कहकर मालिकिन ने ग्लास में सोडा जेंडेला, ओर
पीना शुरू कर दिया। उधर वह घूँट भर रही थीं, इधर - -
इंगर, बुत्त को तरह खड़ा, उसके गले की हड्डी का हिलना .
देख रहा था । दा
थोड़ी देर बाद बोला--“तो फिर दतला”““*““का-ही |
निश्चय रहा {> के हल 1
मालिकिन ने हाथ मलकर कहा--“क्या अच्छी बात
है--समभते-ही नहीं १ क्या मेँ दतला के बुरे में हूँ ? मुमे
उससे कुछ बेर है ? भगवान् साज्ञी हैं, में तो उसके लिये
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