महापाप | Mahapap

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Mahapap by महात्मा टॉल्स्टॉय - Mahatma Tolstoy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६. ` गोरी का सामल पमे उसने खद-दी आकर से माफ़ो माँगी, अपना अपराध स्वोकार किया, घर्टों बैठा रोता रहा, ओर आइन्दा कोई शिकायत न देने की ` क्स्म खाई । वह दिन था, ओर आज है सात महीने बीते- कभी तो उसने प्रमाद नदीं किया, कभी शराब से . बेहोश नहीं हुआ, ओर हमेशा, हर-काम चुस्तो ओर लगन के साथ करता रहा | उस दिन उसकी ओरत कहती थी, कि अब उसमें ज़मीन-आस्मान का अन्तर होगया है। बताओ, ` अब जब उसने अपना इतना सुधार कर डाला है, तो मैं रु उसे ऐसी कड़ी सज़ा देतो अच्छी लगूँगी ? इसके अतिरिक्त . में तो ऐसे आदमी को सिपाही बनाना पाप सममभती हूँ, जो. पाँच बच्चों का बाप हो; ओर अकेले जिसपर सब के पालन... -का भार हो ! “नहीं, ईंगर, अब इस बारे में तुम कुछ कहो-ही मतत 1. | ১ শা ' कहकर मालिकिन ने ग्लास में सोडा जेंडेला, ओर पीना शुरू कर दिया। उधर वह घूँट भर रही थीं, इधर - - इंगर, बुत्त को तरह खड़ा, उसके गले की हड्डी का हिलना . देख रहा था । दा थोड़ी देर बाद बोला--“तो फिर दतला”““*““का-ही | निश्चय रहा {> के हल 1 मालिकिन ने हाथ मलकर कहा--“क्या अच्छी बात है--समभते-ही नहीं १ क्या मेँ दतला के बुरे में हूँ ? मुमे उससे कुछ बेर है ? भगवान्‌ साज्ञी हैं, में तो उसके लिये




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