बुन्देलखण्ड एजेंसी का प्रबन्ध और इतिहास | Bundelkhand Agency Ka Prabandh Aur Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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^ पता प ए म महत की सलाह दी थी। यहां के लोगो की स्वतन्त्रता प्रिय मनोवृत्ती के कारण उन्हे कौटिल्य ने दुष्टाश्च-पुष्टाश्च' कहा था | चाणक्य का यह उल्लेख इस क्षेत्र के निवासियों की विद्रोही मनोवृत्ती का संकेत देता है। मौर्यों के पतन के पश्चात्‌ शुंग शासनकाल में उत्तर भारत का अधिकांश क्षेत्र पुष्यमित्र और उसके उत्तराधिकारियों के अधीन रहा। पुष्यमित्र के समय उसका पुत्र अग्निमित्र इस प्रदेश का वायसराय था जिसकी राजधानी विदिशा थी। यह क्षेत्र निःसन्देह अग्निमित्र के ही अधीन शासित था। एरच से प्राप्त पुरावशेष भी इस क्षेत्र में शुंग शासन को प्रमाणित करते हे | प्रथम सदी इसवी मँ संभवतः यह क्षत्र कुषाणो के अधीन रहा हे | कनिष्क के समय (78३. -101३.) के समय देवगढ़ ओर मथुरा के बीच व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध के उदाहरण प्राप्त होते है। क॒षाणों के अतिरिक्त यह क्षेत्र नागों के प्रभावों में भी रहा नरवर से प्राप्त नाग शासकों के सिक्‍के तथा समुद्र गुप्त के प्रयाग प्रशस्ति मेँ उल्लेखित गणपति नाग संभवतः इस क्षेत्र का शासक था। तीसरी सदी ईसवी मेँ मध्य क्षेत्र मे वाकाट्क वंश राज्य करने लगा ओर इसी समय प्रबरशेन नामक वाकाटक नरेश ने बुन्देलखण्ड पर अपना अधिपत्य स्थापित किया था चौथी शताब्दी के मध्य में समुद्रगुप्त ने ,अपनी दिग्विजय .के अन्तर्गत बुन्देलखण्ड पर भी अधिपत्य स्थापित किया। गुप्तों का यह शासन छठी शताब्दी तक चलता रहा।* गुप्तों के शासन प्रबन्ध के अभिलेख में इस क्षेत्र को चेदि भुक्ति ` जय बुन्देलखण्ड - सीताराम चतुर्वेदी 1980, पृ0 एन एडवांस हिस्ट्री ऑफ इंडिया आर0सी0 मजुमदार, 1980, लन्दन पृ0 बुन्देलखण्ड का संक्षिप्त इतिहास, गोरेलालतिवारी, पृ 1: मेमायरस ओंफ द ए0एस०आई., संख्या 70 माधवस्वरूप (द गुप्ता टेम्पल एट देवगढ़) पृ. - 11 . झाँसी गजेटियर, ई.बी0 जोशी 1965, पृ. अ.. बुन्देलखण्ड एजेन्सी का और इतिहास (802-1947) 72435 0 রি 0




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