शीघ्रबोध भाग - 13-14 | Sighrbodh Bhag-13,14

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : शीघ्रबोध भाग - 13-14  - Sighrbodh Bhag-13,14

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्ञानसुन्दर जी - Gyannsundar Ji

Add Infomation AboutGyannsundar Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
११ (६८) सेत्रबेदनाद्ार-अत्यक् नरकमें चेत्रदेदना दश दश प्रक्ारकी है अनन्त छुधा, पीपासा, शीत, उप्ण, रोग. शोक, ध्वर, ऋुडाशपणे, ककंशपणे, झनस्त पराधिनपणे यह देदना हमसो होती है पहली नरकसे दुसरी नरक्मे अनन्त गुसी चेदना है एवं यावत्‌ छठीसे सातमी नरकमें अनन्त गु्णी वेदना हे चदा नर्तके नामादुम्बारभी नरक्मे वेदना दै सेते रत्मप्रभामें खरकरंड रन्नोंका ই ठथा वह वेदना बहुत है ओर शाकरप्रभामें ज्मीनके स्पश तरघारहीी घारासे अनन्त गुण दीक्ष है बालुकापरभाक्ती रती अभिक माप्तीक जल रही ट. पंक्प्रभा रोद्रमेद चरवीका किचमचा हूदा है ध्ृमप्रभामें शोम- लमनिब्यकसे अनन्त गुण खारें धरम है. तमप्रभामें अन्‍्धार, तमतमाप्रनामे धीरोनधीर झन्धार है. इ्यादि अनन्त वेदना নযঙ্কল है ১ देवङत्खदनः दन्नं दुरः আলী লঙ্কা বলাঘামা देवता दृत र उदङ উইল হই নল है चोय गीवा नरक दग्र লাল दवा জন ভা লী হাঃ नन्त जके बदन कमते डट्‌ नन्मे नमम नाज लायन ই শান মানা नग्न কল ₹ ইনস্টল ই্নাস্বাল লক্ষন জান वेदनावाला नारकी अस्तज्यानगुशा ই र इक्रयटार --ताउछी स्य दन्ना स= $




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now