जैन धर्म परिचय | Jain Dharm Parichay

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Jain Dharm Parichay by अजितकुमार - Ajitkumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) की हालत में हवा का पुदूगल ( मैटर ) चखने में और देखने में श्रा जाता है। आग में रंग, स्पशं मालूम होते हँ रस, गन्ध मालूम नहीं होते किन्तु वे उसमें हैं अवश्य। उस समय सूद्रम रूप में हैं । हालत बदलने पर वे दोनों गुण भी मालूम होने लगते हैं । शद्‌ पुद्गल है उसके तीन गुण सूचम हैं। किन्तु स्पर्श कुछ जाहिर होता है । शब्द पुद्‌ गल है इसी कारण पुदूगल पदार्थों से ( बाजे, मुख, तोप श्रादि से ) वह पैदा होता है । टेलीफोन, आमोफोन, लाऊड स्पीकर, बेतार का तार, तार श्रादि यन्नरं से पकड़ में आ जाता है, बन्द कर लिया जाता है, दूर भेज दिया जाता है। बिजली, तोप आदि के भयंकर शब्द से कान के परदे 'फट जाते हैं, जोरदार शब्दों के आघात (टक्कर ) से श्वियों के गर्भ गिर जाते हैं, पहाड़ की चट्टानें गिर पड़तो हैं। ऐसी जोरदार टक्कर पुदूगल पदाथ हुए बिना नहीं हो सकती । (6 पद्गल का दशा । ৩ पुदूगल दो दशाओं में होता है, परमाणु और स्कन्ध । परमाणु पुदूगल का सब से छोटा अखण्ड टुकड़ा है। उन टुकड़ों के आपस में मिलकर बने हुये बड़े टुकड़ों को रकन्‍्घ कहते हैं। शब्द एक विशेष प्रकार का पुदगल है । सके स्कन्ध सब जगह भरे हुये हैं ।




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