प्रेमकान्ता - सन्तति भाग - 8 | Premkanta Santati Bhag - 8
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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No Information available about आशुकवि शम्भुप्रसाद उपाध्याय - Ashukavi Shambhuprasad Upadhyaya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হু _आठवां भाग
বলেত `
ॐ& चौथा बयान ॐ
ূ स ओरत के घृघट खोलतेही सावित्री की
सूरत देख, उसे पहचान कर बड़ी मुहब्बत
के साथ कुमार रणधीरसिंह ने उसे गले
खगाया, मगर उस ओरत ने जबदी में
उनके दोनों हार्थों का अपने गले से छुड़ा-
कर दो कदम पीछे हटते हुए. उनले कहा - ऐ | आपको क्या
होगया है ? मालूम होता है आपके दिमाग मे गर्मी घुस म
है? में सावित्री है, आपकी आंखें मुझ सावित्री देख रही
हैं? आप होश मे तो हैं, ज़रा होशमं आइए कुमार ! आपकी
बाते छुनऋर मुझे मय मालुम देरहा है। में आपके पास अब
अकेली नहीं रह सकती, - ज॒रा हट जाइप,- मे लोडिया को
बुलाती हूं ।
कुमार - ( बेचैन होकर ) क्या तुम खाचित्री नहीं हो?
मगर तुम्दाारी सूरत तो खाक साफ सावित्री ही बता रही है
वह -मेरी सुरत सुभे साधित्री बता रही है १ भूट ~ बिल
छल भूठ ? आप इतने बड़े राजकुमार होकर इस तरह भट
बोलते हैं ' आपको ऐसी बाते शोभा नहीं देती । देखिए - गौर
करके देखिये, जुरा अच्छी तरह आंखे मलकर देखिये, - में
जन सावित्री ही हैँ, न मेरी सूरत सावित्री ही को तरद्द है।
कुमार--क्या तुमने कभी सावित्री को देखा है १
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