भारत के देशीराज्य | History Of The Indian States
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.32 MB
कुल पष्ठ :
936
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुखसम्पत्तिराय भंडारी - Sukhasampattiray Bhandari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स समय मुगल साम्राज्य का सितारा अस्ताचल की भोर जा र्ददा था उस समय महाराष्ट्र में एक नई शक्ति का उदय दो रहा था जिसकी ज्योति से सारे हिन्दु- भारत का हृदय जाज्वल्यमान हो उठा था । बड़ौदे के गायकबादू इस शक्ति के एक प्रकाशमान रत्न थे । न मरददठा साम्राज्य में खण्डेराव दाभाड़े नामक एक अत्यन्त बीर भर प्रतिभाशाली मदाजुभाव हो गये हैं इन्होंने मुगलों के साथ भमेक युद्ध कर ्ापने वीरत्व का अदूझुत प्रकाश किया था । आपके इन्दीं पराक्रमों के कारण सतारा के राजा ने आपको सेनापति के उत्तरदायित्व पूर्ण पढ़ पर अधिट्ठित किया था । यदद घटना ई० सन् १७१६ की दै जब कि आप सातारा में रहते थे । दामाजी गायकवाढ़ आपकी अधीनता में एक उच्च पद पर अधिछ्लित थे । कहने की आवश्यकता नहीं कि दामाजी बड़े वीर और प्रतिभाशाली मद्दालुभाव थे । आपने अनेक युद्धों में पूर्व वीरत्व का प्रकाश कर ख्यादि लाभ की थी। आप अपने वीरत्वपूरण कार्ययों के कारण शमशेर बद्दादुर की उच्च उपाधि ले विभू षित किये गये थे । इ० सच् १७५१ में वीरवर दामाजी का स्वर्गवास हो गया और आप के बाद आपके भतीजे पिलाजी गायकवाड़ उत्तराधिकारी हुए। आप ही बढ़ौदे के आधुनि के राजबंशक जन्मदाता हैं । सेनापति महदीदृय ने शुजरात से ख़िराज बसूल करने का काम आपके कंधों पर लिया । यहाँ यदद कहना आवश्यक है कि सेनापति को खिराज-बसूली का अधिकार सातारा के राजा की ओर से प्राप्त हुआ था। वीरवर पिलाजी ने सोनगढ़ में अपना खास मुकाम रख था और वे बहाँ ० सन् १७६६ तक रद इसके बाद पटुस
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