भारत के देशीराज्य | History Of The Indian States

Book Image : भारत के देशीराज्य  - History Of The Indian States

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स समय मुगल साम्राज्य का सितारा अस्ताचल की भोर जा र्‌ददा था उस समय महाराष्ट्र में एक नई शक्ति का उदय दो रहा था जिसकी ज्योति से सारे हिन्दु- भारत का हृदय जाज्वल्यमान हो उठा था । बड़ौदे के गायकबादू इस शक्ति के एक प्रकाशमान रत्न थे । न मरददठा साम्राज्य में खण्डेराव दाभाड़े नामक एक अत्यन्त बीर भर प्रतिभाशाली मदाजुभाव हो गये हैं इन्होंने मुगलों के साथ भमेक युद्ध कर ्ापने वीरत्व का अदूझुत प्रकाश किया था । आपके इन्दीं पराक्रमों के कारण सतारा के राजा ने आपको सेनापति के उत्तरदायित्व पूर्ण पढ़ पर अधिट्ठित किया था । यदद घटना ई० सन्‌ १७१६ की दै जब कि आप सातारा में रहते थे । दामाजी गायकवाढ़ आपकी अधीनता में एक उच्च पद पर अधिछ्लित थे । कहने की आवश्यकता नहीं कि दामाजी बड़े वीर और प्रतिभाशाली मद्दालुभाव थे । आपने अनेक युद्धों में पूर्व वीरत्व का प्रकाश कर ख्यादि लाभ की थी। आप अपने वीरत्वपूरण कार्ययों के कारण शमशेर बद्दादुर की उच्च उपाधि ले विभू षित किये गये थे । इ० सच्‌ १७५१ में वीरवर दामाजी का स्वर्गवास हो गया और आप के बाद आपके भतीजे पिलाजी गायकवाड़ उत्तराधिकारी हुए। आप ही बढ़ौदे के आधुनि के राजबंशक जन्मदाता हैं । सेनापति महदीदृय ने शुजरात से ख़िराज बसूल करने का काम आपके कंधों पर लिया । यहाँ यदद कहना आवश्यक है कि सेनापति को खिराज-बसूली का अधिकार सातारा के राजा की ओर से प्राप्त हुआ था। वीरवर पिलाजी ने सोनगढ़ में अपना खास मुकाम रख था और वे बहाँ ० सन्‌ १७६६ तक रद इसके बाद पटुस




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