वर्तमान भारत | Vartaman Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यतमान मारत ই को युवराज बले के, (टिए प्रापनग! की थी, सीता के बनवास तक के पडिए छिप ठिपफर सझादें मी को पी, ते। मी प्रक्ष रूप से, राज्य কী সা की तरइ, प्रजा किसी विषय में मुंद नहीं खोछ सकती थी। चद्ट अपने सामर्थ्य को अप्रत्यक्ष और अव्यवत्यित रूप से प्रकट किया करती थी। उस शक्ति के अध्ठित का शान उस समय भी उसे नहीं शथा। इसी से उस शक्ति की संगठित कर कार्मरूप में परिशत करने का उसमें न उच्चोग पा और न इच्छा दी । जिस कोशल से छोटी हारी शक्तियों आपस में मिछकर प्रचण्ड बछ संग्रह करती दै, उसका भी पूष समतया दथा थह नियमो के अमव्रके कारण था! नहीं ! नियमं सर विधियों सभी थी] कर-तंप्र्ट, सेन्‍्य-प्रवन्ध, विचारसम्पादन, „ „ .,. दइण्ड-्पुरस्कार आदि सब विषयों के लिए কে সাহা सैकद्ों नियम पे, पर सबकी जह् में बद्दी द्वारा प्रजाशक्ति के हविवय, दैवशक्ति अयवा ईश्वर की प्रेरणा पधिकास भें विधघ)- थी। नें उन नियम में ज़रा भी हेरफेर हो सकता था, और न प्रजा के लिए यद्दी सम्भव था कि वह ऐसी शिक्षा प्रात करती जिससे मापस भें मिलकर व्यक-द्वित के काम कर सकती, अथवा राज-कर की तरह दिए हुए अपने घन पर अपना स्वत रखने की बुद्धि उक्तम उततर हेती, या यही कि उसके आयनब्यय के नियमन करने का अधिकार प्रा करने की इच्छा उसमें होती | ^ किये षद नियम पुस्तकों थे ये। और करी पुष्तको के




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