संकल्प - शक्ति | Sankalp Shakti

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Sankalp Shakti by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संकटरपशक्ति का विकास ११४. रूप में पारिरीत दोजाती है। इच्छा मन की दढ़ता पाकर सेकशप वन जाती है । ्रथौत्‌ ज्ञान, अनुकूलता श्र दढ़ता से संयुक्त कल्पना का नाम सेंकट्प है। जिस क्रम से संकल्प मन में उदय होता है, वदद ऋम सकस्प की उक्त परिभाषा सूचित कर रहा ट्रै। ज्ञान--प्रत्येक मजुष्य को कासय्ये झारस्भ करने के प्रथम इस कै, भ पति कै, दिए कै बात को शलीभाति समभक लेना चादिए कि उसे क्या करना ७ चाहिए ? जिस कासय्ये को प्रारम्भ करना दे श्औौर जिस विवि से वह काय्य किया जायगा, ये दोनें। ही उसे इतनी अच्छी प्रकार समभा लेना चाहिए कि जिस समय उनकी श्रावश्यकता पढ़े ठीक उसी समय उसे स्मरण दो जायें । आप सेकलूप तथा शान्यान्य शाकियां चाहे कितनी भी उन्नत करलें बरन्‌ यदि उद्देश श्रौर उसकी विधि नहीं जानते तोइन शक्तियों से कुछ लाभ नहीं पहुंच सकता श्औौर शनै: शने: श्यापंकी संकरप-शाक्ति चीस टोने लगेगी । जिस प्रकार दिना निशाने के, निश्चित किया डुआआा तीर श्रपने तरकस को खाली करना हैत , परिश्रम करते इुए भी इष्टफल नहीं प्राप्त कर सक्ता ठीक इस' ७. दर # ् प्रकार बिना उद्देश के संकलप-शाक्ति का उपयोग चूथा है। के यदि कोई मजुष्य बड़ा तेज चलनेवाला है और बहुत री शक्ति चल सक्ता है, बरन्‌ वह चलने के पढिले यह न समभझले ' “४- .... कह ला चलना कहां है शरीर किस मार से सभा चलना है __“+ ०, ड . « अ दम क स लिये मेरा उद्देश क्या है, श्रौर इन बातों के करने 'के शा किये ही वह चलना प्रारंभ कर दे तो... 2 | चलना सार्थक श्रौर निष्कंटक होगा । खिया दे, उस समय पर भी दम उस काय्ये, जितना -ापको उद्देश का शान भले'्ल लेते हैं श्र दी आपकी मानसिक शाक्तियां जातकों नहाप्क्रो नहीं चाड़ ी भी गन




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