फिजी की समस्या | Fijee Ki Samsya

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Book Image : फिजी की समस्या  - Fijee Ki Samsya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुराचारं पूर्णं खिति । “ই प्रयासों भारतोयों के नतिंक पतन के लिये कहां तक जिम्मे- चार हैं । प्लाप्टर लोग भारते से उतनी हो ओरतें बुना चाहते थे ज्ञितनी कुछियों की कामेच्छा पूर्तिके लिये काफ़ी हों, अधिक नहीं, क्योंकि खेंतों परं भद॑ जितना काम कर सकता है, ओरत उसका आधा ही कर सकती हैं। श्सी कारण से फिजो के प्छाण्टरों ने फिज्ञी गवर्मण्ट पर दवाव॑ डाला कि ओरतोंका औसत ३३ फीसदी से ज्यादः न रक्खा जाव ! अपने দীন হিজর ইজ ক ভাল के सामने प्ला- ण्ट्यों ने यह नहीं सोचा कि सो पुरुष पीछे तेंतीस औरतों को बुखाने से कितने दुराचार फेलेंगे ओर भारत सरकार ने फिजी के प्लाण्टरों की इस अर्थ पिशाचता का कुछ वि* शोध भी नहों किया। सन्‌ १८८३ के बाद किसी सार सें भारत सरकार ने इस वात का अनुरोध किया था कि ओ रतों का ओसत सो पुरुष पीछे ४० कर दिया जावे । इसके चाद सरकारने इस मामरे को जहां का तहां पड़ा रहने दिया | प्लाप्टर छोग भर्ता क्‍यों माने रूगे ? उन्होंने सोचा “सेयां भये कोतव्राल भत्र डर काहे का” प्रतिवर्ष दो तीन हज़ार कुछी वे भारतवर्ष से मंगाते रहे ओर हमारी सरकार उस पर चरावर कृपा करतो रही । इसका परिणाम क्रा हुआ चह मिस्टर ऐण्ड ज्ञ के ही शब्दों में ही खुत ली- जिये-। “ये पाप-कर्म फिज्जी में इस प्रकार प्रचलधित हैं मानों इसूचारों की कोई महामारी हो फेर गई हो, ओर ङु




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