संघर्ष की ओर | Sangharsh Ki Aur
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.53 MB
कुल पष्ठ :
521
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संघर्ष की ओर 2 ७ और उसके साथियों के साथ वहीं रह जाएं । वहाँ उद्घोष था--उसके ग्रामवासी थे । वे लोग कहां चाहते थे कि राम उन्हें छोडकर जाए मुखर और सुमेघा की देखा-देखी सारा गांद ही सीता को दीदी कहने लग गया था । सीता बन भी तो गयी थी उनकी दीदी । सबकी आवश्यकताए और ढेर सारे लोगों के असंख्य मतभेद । कसा स्नेह था सीता को उनसे कसा अधिकार और कैसा अनुशासन । अनुशासन तो सौमित्र का था । एक आह्वान पर ग्राम के ग्राम सेमिक अनुशासन में बंघे हुए स्कंघावार वन जाते थे । खेतों में काम करते स्त्री- पुरुष तत्काल अपना काम छोड़ अपने निश्चित स्थान पर पहुंच जाते थे । बालक पाठशालाओं से निकल आते थे गृहिणियां घर का काम छोड़ उपस्यित हो जाती थी... इन सारे के साथ मुखर की सगीतशाला भौर उद्घोष की मूतिशाला भी खूब मज़े में चल रही थी । बच्चों के साथ वयस्क भी अपनी इच्छा की शाला में जाकर पढ़ते-लिखते तथा अन्य कलाए सी खते थे । उनके शरीरों के साथ उनकी आत्माएं भी मुवत हो गई थी । वे अपने वर्तमान और भविष्य के विपय में स्वयं सोचते थे । कोई तुंभरण उन्हें वह बनने से नहीं रोक सकता था जो वे बनाना चाहते थे । वे स्वयं उत्पादन करते थे स्वयं उसका उपभोग करते थे स्वयं अपनी रक्षा करते थे । ऐसा लगने लगा था कि जीवन व्यवस्थित स्थिर तथा सुंदर हो गया है । चित्रकूट छोड़ना कितना कठिन हो गया था 1... कितु चित्रकूट छोड़ते ही ससार बदल गया । अन्रि ऋषि के आश्रम पर ऋषि-दंपति से भेट हुई । उन॑ लोगों ने अपना जीवन एक ही लक्ष्य को समर्पित कर रखा है । उनके यहां खुला वार्तालाप हुआ । वाद-विवाद भी हुआ--परिसवाद ही कहमा चाहिए किंतु सारी वातचीत में परिवेश मे व्याप्त अमैक प्रकार के अत्याचारों की कोई चर्चा नही हुई । उन्होंने अपना ध्यान समाज में नारी- पुरुप-संवंधों पर ही केन्द्रित कर रखा है । वृद्धा ऋषि अनसुया के शब्दों ने राम के सन मे बडी देर तक हलचल मचाए रखी थी ... सम स्वी प्रत्येक समाज में पीड़ित है । दासो की स्त्रिया भी पीड़ित है और राजाओ की भी । क्या तुम कह सकते हो कि सम्राट की पत्नी होकर भी तुम्हारी हज
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