खिलखिलाता गुलमोहर | Khilkhilata Gulmohar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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में कह रहा था, आपने तीन बजे की धुप देखी है ?
साधारण गली-कूचों की नहीं । किसी हरी-भरी वादी की । न जाने क्या
दती दुई, तीन वजे की ঘুঘ । बहुत प्यारी लगती है न धूप को उदाक्ष और
কী श्रांखें ? चह वादी में क्या हूंढ़ती हैं ? शायद अपना मध्याह्न रूप
या हप मध्याक्ष ! वृष के उजले चेहरे पर बादी की निरुत्तर छाया परेशानी
में वेक्रिकक मुख पर लटक आई लट-सी लगती है | शायद हर परेशान खूब-
भूरती की बही तसवीर हो सकती है| तीन बजे की धूप अभी-अ्रभी स््लीपर
से उतरी है । वह प्लेटफार्म पर ठहल रही है। 'टहलना' कहना गलत होगा ।
वह किसी को हूं ढ़ रही ভুল दो 1
इतना कह कर वर्माजी अखबार पढ़ने लगे थे शोर में लोगों की भीड
को । एकाएक मेरी दृष्टि प्लेटफॉर्म पर व्यग्रता से चहलकदमी करती उस
पर पड़ गई। बिलकुल वर्माजी द्व।रा अभी-प्रभी बयान किए गए हुलियेवाली
तीन बज की धूप । बस देखते ही रहिये। नजर न भरना चाहती है व
व्हा । मगरटृन को क्क्तसे प्लेटफार्म छोड़ना होता है। ट्रेन सरकसे
लगी और जहदी ही वह सब दुः छूट गया । डिब्बे में वत्तियाँ जल उठों
प्र मेरा मत बुभने लगा ।
मुभे वुभता हुआ देख कर वर्माजी ने फिर कुरेद[--
“कहिये, मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा था ?/
নী ऽ ५ ও ७७७३१००५ मगर ५००५००५१. ^ 1)
“बात दरमग्रसल ऐसी है कि इरो देख कर मुझे अपने एक मित्र की
बाद हो झ्ाई थी ।”-कह कर वर्माजी फिर चुप हो गए ।
वमाली मे मेरा परिचय श्रमो दो-तीन दिन पुराना ही है । होटल
से मर पड़ोस में ठहरें थे। पूरा नाम बताते थे पी. हो. वर्मा; प्रिय दर्शन
समा । इस दोज्तीन दिनों में जितना उन्हें जान पाया हूँ यही कि बड़ी रसिक
तबीयत के ग्रादमी हैं। बातचीत के लहजे में साहित्यिकता का श्राभास
पहला हो भद में हो गया था श्रालिश पटरी बैठ गई। बातचीत करने का
दंग दी इनका ऐसा है । दाहीं भावकता में बहुत अधिक वह जाएंगे ग्रोर
बोलते है जाएंगे और कहीं एका-एना शब्द पर इस तरह झफोे घार सोचते
ग्गो গল মানাল হানায় লন মাহ हो ) ससे अवसरों पर मुझे इन घाों
हे सुलझाने मे सटायता कस्नी पड़ता है ।
तीन ने की पुष 19
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