जैनियों के 111 प्रश्नों का वैदिक प्रमाणों के साथ युक्तियुक्त उत्तर | Jainiyo Ke 111 Parshno Ka Vaidik Pramanon Ke Sath Yukiyukt Uttar

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Jainiyo Ke 111 Parshno Ka Vaidik Pramanon Ke Sath Yukiyukt Uttar by स्वामी आत्मानन्द मुनि - Swami Aatmanand Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ + पढे इस विशाल बझाण्ड को कंसे बना छक्केगा | परप - , ठ सृष्ट निर्माण में हाथ पर आदि साबना को आवश्यकता नहीं ७ उस “पध्नों की आवश्यकता जपे हआ करती है जो एक देशी हो (ब्रह्म तोब्रक्षाएट . »ये। अबयव से विद्यमान है वह अपनो शक्ति से ~ अबयब को जिस समय चाहे गति दे सच्त्ता है और श्रव॒यबों की उस गति से पदार्थों की रचना हो सकती हे/(हमारे शरोर में * आत्मा भी तो निगकार है)। अपने से दूर के पदार्थों में क्रिया करने के लिये तो उसे हाथ पैर आदि साधनों को आवश्यकता होत, परन्तु पने पासके मन ओर इन्द्रियों म॒ गति देन के लिए उस किसी भी साथन की आ्रावश्यकता नहीं । इसलिए परमात्मा निराकार है, ओर वह अपनी अमोघ शक्ति से जहा इतना विशाज्ञ ब्रह्माण्ड घना सका है सृष्टि के आरम्भ में ज्ञीवों के शरीर भी बना सक्ता है | : >सत्याथं प्रकाश श्रष्टम समुल्लाप प्रष्ठ २०६ में ( प्रश्न ) क्या प्रकृति परमेश्वर ने उत्पन्न नहीं की ( उत्तर ) नहीं, वह झनादि है| फिर ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका प्रष्ठ १२३ में लिखा है कि उसी पुरुष के सामभ्य से उत्पन्न हुआ जिसको मृल प्रकृति कहते हैं। आगे इसी पस्तक के प्रष्ठ १३३ में लिखा हैं कि अपने सामथ्ये से काश को भी ग्चा है जो कि सब तत्वों के टहरने का स्थान है। ईश्वर ने प्रकृति से ल के घास पयन्त जगन्‌ को रचा है इससे ये सब पद्दाथ इ्वर के रचे ছাল से उसका नाम विश्वकर्मा है। श्रब देखिये जस प्रकृति का भादि कारण पुरुष लिखा है फिर वह अनादि किस प्रकार सिद्ध हो सकती हे। एक जगह अनादि झोर दूसरी जगह उसकी रुत्पत्ति बतलाना इस प्रकार परस्पर विरुद्ध होने से दोनों ही मिशया हैं ज्िखिये ! प्रकृति के अनादि होने में क्‍या प्रमाण है ९ १६ उस प्रश्न में श्राप लिखते हैं कि सत्याथ प्रकाश मे प्रकृति को अनादि लिखा हे ओर भूमिका मे उसकी उत्पत्ति लिखी है।इस प्रश्न का उत्तर हम चौथे प्रश्न के उत्तर में भी लिख आये हैं। आपको यद्द ध्यान रहे कि: प्रकृति नाम उपादान कारण का है, आर सृष्टि की कायं परम्परा मे अनक उपदान कारण हैं कोई किसी काय का उपादान कारण हे और कोई किसी का)। उन सब को द्वी कारण




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