कथासरित्सागर | Kathasaritsagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
847
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~ १५ ~
के नामकरण के लिये हुआ है। इस मुख्य कथा-माग को शरीर' कहा गया है और ग्रन्थ के
छः अधिकारों में यह पाचवाँ है। कथा की उत्पत्ति, पीठिका, मुख और प्रतिमुख ये चार अधिकार
उससे पहले आते हैं। शरीर' के पीछे उपसंहार होना चाहिए था, पर ग्रन्थ का अन्तिम भाग
त्रुटित होने से वह नहीं मिलता। म्ख्य कथा-भाग-रूप शरीर की अपेक्षा से लूम्भों का समूह संभ-
वतः गौण था। भूल प्राचीन बृहत्कथा में आमूलचूल विभागीकरण नही था! प्रस्तावित कथा
प्रकरण के बाद दूसरे नामकरण के साथ संख्या बन्ध लम्भ थे ओर उसके बाद उपसंहार था)
संस्कृत रूपान्तरो मे केवर बु हत्कथा्म॑जरी मेँ उपसंहार का निदं है, पर छाकोत उपसंहार को
मूरकथा का गौण अंग गिनते हैं। वसुदेव हिण्डी से सिद्ध होता है कि मूल ब्हत्केथा मे उपसंहार
था। सोमदेव ने अपने कथासरित्सागर में उपसंहार निकाल दिया है, पर उसके अतिरिक्त
क्षेमेन्द्र मे प्राप्त कुछ प्रकीर्ण बातें देने के बाद सोमदेव ने नरवाहनदत के तमाम लम्भकों की एक
सूची अपने ग्रन्थ के आरम्भ में दी है। उससे ज्ञात होता है कि बृहत्कथामंजरी के आरम्भ में
भी मूलग्रन्थ की विषय-सूची थी, जो अब नष्ट हो गई ই |”
“अपने ग्रन्थ में कथा-उत्पत्ति यह शुद्ध जैन कथाभाग है, पर पीठिका और मुख की बाबत
ऐसा नहीं। बुधस्वामी की कृति में 'कथामुख' यह तीसरे सर्ग का नाम' है; पर पहले बेनाम के
दो सर भी कथामुख के ही प्रारम्भिक भाग है। अर्थ-संगति की दृष्टि से कथामुख मे जो होना चाहिए,
वह उसमें है, अर्थात् कथा कहनेवाले का परिचय । कथा कहने का प्रसंग किस रीति से उपस्थित
हुआ, यह उसमे बताया गया है। नरवाहनदत्त अपना सम्पूर्ण वृत्तान्त उत्तमपुरुष में कहते है।
काश्मीरी टेखको ने दूसरे रूम्बक का नाम कथामुख लम्बक रक््खा है। इसमें उदयन की कथा
आती है। बृधस्वामी के कथामुख में जो भाग आता है, वह (कथामुख के लेखकों ने) उस ग्रन्थ
के अन्त मे रक्वा है; ओर नरवाहनदत्त आत्म-व॒त्तान्न कहते है, एसा भी स्पष्ट उतल्केख स्वयं नही
किया। इतना ही नहीं, कथा का वर्णन प्रथमपुरुष में नटस्य रीति मे करिया है । नैपारी रूपान्तर
कौ सचाई भौर काहमौरी रूपान्तर कौ भ्रष्टता सिद्ध करने मे लाकोत का यही मुख्य प्रमाण है।
दस अनुमान को जैन रूपान्तर से भी समर्थन मिलता है। इसमें भी वसुदेव अपना सच वृत्तान्त
आत्मकथा के रूप मे उत्तमपुरुष में ही कहते है। 'कथामुख' अथा उससे तैयार किए हुए प्रति-
मुख द्वारा बताया गया है कि आत्मकथा किस प्रकार कही गई ।
“काञ्मीरी लेखक सोमदेव और क्षेमेन्द्र ने कथापीठ को पहला लम्बक कहा है। ग्णाढय
कवि-संबंधी कथानक उसका विषय है। उसके देखने से ज्ञात होता है कि गुणादय कवि-संबंधी
कथानक का मूल कथा में होता संभव न था। बुधस्वामी के रूपान्तर मे कथापीठ शीष॑ क देखने में
नहीं आता। किन्तु जैसा ऊपर कहा है, बुधस्वामी का आरम्भिक भाग ही कथामुख है। इस आधार
से छाकोत निश्चित रूप से मानते हैं कि गृणाढूय के मूल ग्रंथ में ही कथापीठ अंश नहीं था; पर
वसुदेव' हिण्डी में पीठिका (पेढिया) भाग के होने से मानना पड़ता है कि बृहत्कथा में भी कथापीठ
नामक भाग था। इस कथापीठ का विषय क्या था, यह एक प्रइन है। गृणाद्य-संबंधी कथानक
तो इसमें न रहा होगा और वसुदेव हिण्डी की पीठिका में कृष्ण-संबंधी कथा का जो भाग है. वह
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