मेरी दृष्टी : मेरी सृष्टि | Meri Dristi Meri Sristi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निकलता है। आकाश से अहँत नहीं टपकता और न ही आचार्य और उपाध्याय
आकाश से उतरते हैं। सब साधु से ही निकलते हैं, साधना से ही निकलते हैं। जो
साधना के उत्कर्ष पर चले जाते हैं, वे अहँत् मन जाते हैं, जो साधना की उच्च
भूमिका पर चले जाते हैं, वे आचार्य बन बाते हैं और जो ज्ञान की विशिष्ट साधना
में चले जाते है, वे उपाध्याय बन जाते हैं ।
मूल दो ही हैं--साधु और सिद्ध । अहंत् को भी सिद्ध बनना है, आजा को
भौ सिद्ध बनना है मौर उपाध्याय को भी सिद्ध बनना है। अत भी साधु रहे हैं,
आचार्य भी साधु रहे हैं ओर उपाध्याय भी साधु रद्दे है। मूल दो ही ध्रुव हैं और
ये तीन इन्ही दो ध्रुवों के बीच में होते हैं। मूल बात है कि आत्मा को मंगल
माना गया है। आत्मा ही उत्कर्ष भावता और साधना है। इसलिए इसे मगल
माना गया है।
सबसे बड़ा मगल होता है---आत्म-तत्त्व | आत्मा को हम समझें । ज्ञान मंगल,
आनन्द मगल और शक्ति मगल। मन मगल, वचन मगल और काय मंगल---ये
हमारे मगल हैं। मन मगल भी बनता है और मन अमंगल भी बनता है। मन,
बचन और काय--ये जब वश्ञ मे हो जाते हैं तो मंगल बन जाते हैं और वश में
नही होते है तो ये अमगल बन जाते हैं ।
एक व्यक्ति गुरू के पास गया भौर बोला, “गुरुदेव | कोई ऐसा मंत्र बताएं
जिससे देवता भी मेरे बश मे हो जाएं ।”
गुरु ने कहा, “तुम्हारे नौकर-चाकर तुम्हारे वश मे हैं ?''
“नही ।*
“तुम्हारा परिवार तुम्हारे वश मे है ?
“नही ।”
“बेटा-बेटी वश में है ?”
“नही ।*
“पत्नी तो वश में होगी ?'
“नही, बह भी नहीं ।”
“तुम्हारा मन तो तुम्हारे वश मे है ?
“नही ।
“अरे भाई ! जव तुम्हारे नौकर-चाकरे, तुम्हा रा परिवार, तुम्हारी सतानें,
पत्नी भौर यहा तक किं स्वय तुम्हारा मनतक तुम्हारे वशमे नहीदैतोफिर
देवता तुम्हारे वक्ष मे कंसे होगि ? सबसे पहले तो अपने मन को वशमे करो 1“
देवता को वश मे करने से पहले मन को वश मे करो, शरीर को वश में करो
और वाणी को बश मे करो। आप कोई भी साधता करें--चाहे व्यवहार की, चाहे
परमार्थ की, किन्तु तीन गुप्तियो के बिना कोई वश में नही होता । कितता बड़ा
मगल सूत्र १४
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