भोजपुरी के कवि और काव्य | Bhojpuri ke kavi aur kavya

Book Image : भोजपुरी के कवि और काव्य  - Bhojpuri ke kavi aur kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संम्पांदक का मन्तब्य है के विद्रोह के पहले तक॑ हिन्दुस्तानी पल्टन में भोजपुरी भाषा-भाषियों की संख्या बहुत अधिक थी ।. भोजपुरी जनता की युद्धप्रियता और उम्रता के संबंध में अनेक कहावतें प्रचलित हूँ-- शाह।बाद जिले में दोली का पहला ताल इसी गान से ठींका जाता है बावू कवर सिंह तोहरे राज बिन हम ना रँगइवों केसरिया । कृष्णा की १२ गारिक लीलाओं की अपेक्षा भोजपुरी जनता को उनका वीर चरिन्न ही ाकृषित करता देन लरिंका हो गोपाल कूदि प३़ें जमुना में । यदद दोलों भोजपुर में बहुत प्रचलित है । उक्ति प्रसिद्ध है कि-- मागलपुर के भगो लिया कहलगाँच के ठग | पटना के देंवालिया तीनों नामजद ॥ सुनि पावे भोजपुरिया तो तीनों के तूरे रंग । डा+ प्रियरसन ने ठीक ही कहा है कि हिन्दुस्तान में नवजागरण का श्रेय मुख्यतः बंगालियों झौर भोजपुरियों को ही प्राप्त हैं। बंगालियों नें जो काम अपनी कलम सें किया वही काम मोजपुरियों नें अपनी लाठी से किया । इसीलिए लाठी को प्रशंसा में गिरथर कौ जो प्रसिद्ध कुडलिया भोजपुरी-प्रदेश में प्रचलित है- सब हृथियारन छोड़ि हाथ में रृखिद5 लाठी --उसीसे उन्होंने झपने लिंगुइस्टिक सब ऑफ इंडिया में भोजपुरों के अध्याय का श्रीगणेश किया है। भोजपुरी-भाषा-माषियों की वीर प्रकृति के अनुरूप हीं उनकी भाषा भी एक चलती टकसाली भाषा है जो व्याकरण की अनावश्यक उल्तभनों से बहुत कुछ उन्मुक्त हैं। इस आओजस्वीं और प्रमावशाली भाषा का भोजपुरी जनता की स्वभावतः अभिमान है । दोयादोंसे अधिक भोजपुरी भाषा-भाषी चाहें वें कितने ही ऊँचे या नीचे छोहदे पर हों कहीं भी कभी भी जब आपस में मिलते हैं तब अपनी मातृभाषा भोजपुरी को छोड़कर अन्य किसी भाषा में बातचीत नहीं करतें । चस्तुतः पूर्वों भाषावग में भोजपुरी का एक विशिष्ट स्थान है । न साहब नें भोजपुरी को मैथिली श्ौर मगहीं के साथ रखकर उन्हें एक सामान्य नाम बिहारी के द्वारा सूचित किया हैं और बंगाली उडिया आसामी तथा अन्य बिहारी भाषाओं के समान भोजपुरी को भी मागधी-अपधश से व्युत्पन्न माना है। किन्तु साथ हो उन्हें यह भी स्वीकार करना पढ़ा हैं कि मैथिली और मगही का पारस्परिंद संबंध जितना घनिष्ट है उतना उनमें से किसी का भी भोजपुरी के साथ नहीं हैं। एक ओर मैथिली मगहीं और दुसरी झोर भोजपुरी के घातुरूपों में जो स्पष्ट भेद है उसको ध्यान में रखते हुए डॉ० सुनौतिकुमार चटर्जी ने भोजपुरी को मेधथिली-मगही से भिन्न एक १ पेसा प्रतीत होता हैं कि जिस समय यह कहावत प्रचलित हुई उस सभय इन हवानों में पे कोगों की अधिकता हो गईं होगी 1 २. 7 5 प. ए&पतहाधुं 0 छ. 8 1... . 932.




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