अस्तित्व की खोज | Astitva Ki Khoj

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Astitva Ki Khoj by पुरुषोत्तम तिवारी - Purushottam Tiwariशिवरतन धानवी - Shivratan Dhanavi

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पुरुषोत्तम तिवारी - Purushottam Tiwari

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शिवरतन थानवी - Shivratan Thanavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संवाद की सलाका ए क्षमा चतुर्वेदी शिक्षण जगत से बढ़ रही भ्रतेक समस्याश्री पर झगर गंभीरता से विचार किया जाय तो प्रमुख कारण यदी दुष्टियोचर होता है कि कही कुछ टूट गया है । शिक्षक जो झाज वेतनमोगी द्रोणाचार्य के रूप में उमरता हुमा वर्गे है, वह मात्र '्राकर छात्रों को रटतू शब्दावलों में कितादों को उल्टा उगल देने में हो श्रौर छात्रों को बिना निसी तक के उठते स्वीकार करने को ही धनुशासन भर ज्ञान- प्राप्ति की एकमात्र मुदा समकता है। उसके सामने प्रश्न पूछ लेना था दिसी तक पर मी उतर घना वह झपनी वौहीन रुमकता है । एक बात भौर जो नव-वौद्धिक वर्ग में समर रही है, वह यह है कि बह अन्य किसी प्रकार के नेतिक मूल्य को उपयोगी भी नहीं समभकता है । शिक्षा का उद्देश्य छात्र का सर्वाज्ञोण विकास है. या उसकी नैसणिक वृत्तियों का उद्घाटन होना है, या लोकतात्रिक जीवन- पद्धति के प्मुसूप नागरिक तेयार करना है, णह सब कुछ क्तावी दात रहे गई है। शिक्षक मात्र सरकारी वर्मचारी रद्द गया है--जोकि शिक्षण सस्वाधो को उसी तरह चलाता जा रहा है जैसे नयरपालिका या पुलिस थाना या श्रन्य कोई सरकारी दफ्तर चलता है । भर छात्र समुदाय ' वह भाष यह मानकर चलता है कि उसका जीवन दे भहत्‌ लक्ष्य से कोई सम्बन्ध नही है । जब सारा समाज ही पतनोन्पुख है तब पभुक्के ही प्रगति से बया लेना है। वह शिक्षण संस्थानों को भाप मनोरजन का देन्द्र मान बैठा है । शिक्षक था उसनी नियाही से कहीं कोई सम्मान नहीं रह गया है । बह एक पता 'घडी है जिसरा बाम गही ने बही दजना ही है। धाज भगर बही पर सी बटर होती है तो छात्र समुदाय सारा दोप भरने शिक्षक के ऊपर रराकर बरी हो जाते हैं तो दूसरी झोर शिक्षक छाद समुदाय को ही भनुशासनहीन तया झराजक की सजा देकर घपने-घापकों मुक्त सममते हैं । म्रइन यही समाप्त नही हो जाता है । इस समस्या का मूल वारण यही है कि भाज रिशण सस्याएँ मो सरदारी कार्यालम या वारखाने मै शक्ल में




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