व्याख्यान मौक्तिक | Vyakhyan Mauktik
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
740 KB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१)
देव ] लद्क्न चकिताः शयितुं खजाति--
मेके मृगाद्भुमृगमादिवरादमन्ये ॥
ই ইন! श्रापके श्रख से भयमीत हुए रये ग सो चन्द्रमा के
मृग की शस में और शकर, आदि वाराद की शरण में जाने के
लिए इस प्रकार कर रहे हैं। इतना सुन कर राजा ने एक हरिण के
ऐसा बाण मारा कि उसके लगते ही विचार आतंनाद करता हुआ
भूमि पर गिर पड़ा ! करुणामय हृदय धनपाल से यद्द घटना देख
कर न रहा गया | बह राजा से बोला कि :--
গান यातु तवात्न पौरुषं, कुनीतिरेपाइशरणों दोषवान् ।
निहन्यते यद्नलिनापि दुबेलो, ह॒हा ! महाकपष्टमराजक॑/जगत् ॥?
राजन | तुम्हारा यह पुरुषा्थ रसातल में जाय ! बलवान
मनुष्य, दीन निरपराध प्राणियों को मारे, यह बढ़ा भारी अन्याय
है | दा ! घड़ा भारी कष्ट है ! संसार अराजक ( रजा विनाका )
ই गया अथोत् कोई न्यायाधीश नहीं रहा ! मतलब कि, राजा पी
मनुष्य और अनाथ पद्ु पक्षी सभी प्रजा हैं! उसको सब पर
समान भाव रखना चाहिए। धनपाल पंडित फिर कहते हैं।
“राजन |--
“बैरिणोपि दि मुच्यस्ते, प्राणान्ते लशभक्तणात्।
वणाहारः सदैवैते, हन्यन्ते पशवः कथम् १ »
प्राशांव के समय पर यदि मद्दा शत्रु भी मुख में घास लेकर
शरण में आते तो” वह भी मुक्त कर दिया जाता है।फिर ये
वित्रे रना पु जो सवेदा घास ही खाते हैं, इन्दें बयों माग
जाता है
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