खोयी हुई दिशाएं | Khoyi Hui Dishayen

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Khoyi Hui Dishayen by कमलेश्वर - Kamaleshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पड़ता है, उसकी सजावट में बड़ी सुरुचि है। घर देखकर उसके जीवन के सुख से सहज ही किसी को द्या हौ सकती ह । नीले परदों के पीछे सने ये कमरे बड़े रहस्यमय लगते है, रात को जब उनमे रोशनी होती है और कुन्ती अपनी साड़ी का पहला कमर से लपेठे कभी उन परदो के पीछे से गुजरती है तो उसकी समतल चाल से फ़र्श पर क़ालीन बिछे होने का योध होता है। वह कभी सन्तप्त या व्याकुल नही दिखाई दी, उसने कभी नजर उठाकर इधर-उधर बहशी मिगाहों से किसी को देखा हो, ऐसा भी नहीं हुआ | उसके मन में कभी बादल घुमड़े हों और बरसमे से पहले की उदासी ही छायी हो, यह भी नहीं दिखाई दिया। इस खिड़की से उसके घर का नक्शा ऐसा दिखाई देता है जैसे किसी सुरंग में बसे मकान के कदे हुए हिस्से दिखाई दे रहे हों। यहां से इन ऊपर वाले कमरीं के अलावा नीचे का गुस्तख्लाना, आँगन का थोड़ा-सा भाग, तीन-चौथाई बरामदा और बरामदे के भीतर वाले कमरे का वह हिस्सा दिखाई पडता है जिसमे ख्वगार-मेज़ रखी है सुबह वह यही दिखाई पड़ती है, लगभग एक-डेढ़ घण्टे के लिए । उसके बाद वह भीतर वाले उन रहस्यमय कमरों मे खो जाती है। घर मे दो पुरुष दिखाई पड़ते हैं, जिनमें से एक उसका पति है और एक सौतेला लड़का, जिसकी उम्र लगभग बीस वपे फ होगौ । कुन्ती के पति छोटे-मोटे रईस है । उन्हें कपड़े पहनने और ढंग से रहने का शौक़ है । इस घर में कभी दंगा-लडाई या मनमुठाव की छाया तक नही दिखाई दी | छोठे-से गिरजे की तरह ईश्वरीय शान्ति यहाँ फैली थी और ये तीनों ही प्राणी मिशनरियों की तरह अपने-अपने कत्तेब्य में लगे नजर आते थे । इन कमरों से कभी ऊँची आवाज, उन्मत्त क़हकहे या बिलासपूर्ण जीवन की ग्रुनगुनाहट भी नही सुनाई दी ? पर यह शान्ति तूफान से पहले की थी। यह पता नही था। कोई भी घटना इतने अप्रत्याशित रूप से सामने आयेगी, इसका अहसास नहीं था। कुन्ती आत्मलीना थी। जब वह गुस्लख़ाने में नहाने जाती या वहाँ से निकलती तो अपने मे लीन रहती । उसे इस बात का ज्ञान तक न होता कि कई खिडकियों को आँखें उसे धरती हैं या किसी दूसरे मकान की छत पर भी कोई हो सकता है 1 एक अश्लील कहानी / 1




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