प्रभात कुमार मुखर्जी की कहानियाँ | Prabhat Kumar Mukherjee Ki Kahaniyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देवी ७
पहले पहल दया कौ नीद खुली। उसने कककोरकर उम्ता को
जगा दिया ।
कालीकिकर ने फिर आवाज दी--उमा 1 उनकी झावाज कुछ
काप रही थी, मानो वह बदल गई हो 1 यह उ हीका कठस्वर है यह
सेडी मुश्किल से समझ में आया।
इतने सबैरे पिता जी तो कभी बुलाते नही, और आज उनकी
आवाज ऐसी कैसे है ? तो क्या सचमुच लल्ला को कुछ हा #न्रमा गया
है १ उमाप्रसाद ने उठकर चटपट दरवाजा खोल दिया 1
उसने देखा क्रि पिता जी रक्तवण का कौपेय वस्त्र पहन हैं, कंधे
पर नामावली का उत्तरीय है भले म रुद्राक्ष की माला है। यह क्या ?
इतने सबेरे उनका पूजा कर भेप कया २ और दिन तो गमा स्नान क्सन
के बाद वे पूजा के बस्तर पहनते हैं। मूहृत भर मे ये विचार उमाप्रमाद
के मस्तिष्क म उठ सड़े हुए ।
दरवाजा खोलते ही कालीकिकर ने पुत्र से पूछा--/बटा, छाटी
यहू कहां है ? *
स्वर पहले को तरह बाप रहा था। उमाप्रसाद ने कमरे मे चारा
तरफ़ देखा । दया विछीवा छोडकर बुद्ध दूरी पर युमचुम खडी थी ।
कालीक्कर ने भी उसी तरफ देखा। बट को देखते ही, पास
গাল उसके चरणा में साप्टाग नमस्कार क्या 1
उमाप्रसाद विस्मय के मार भिक्दा हो गया। दयामयी ससुर
के इस श्रद् सुत भ्राचरण को देखकर चुपचाप निश्पद खडी रही 1
प्रणाप्त करने के वाद कालोकिक्र बौले--माँ, मेरा जम साथक
हो गया । लेकिन इतने दिव क्या ,नही वताया यी; ^ ` >
उमाप्रस्ताद बोला--/पिता जी पिता जो 1२%... .. ५ +
कालीक्षकिर बोले--“बेट। इह प्रणाम करो ('छऊ ~ ই
उमाप्रसाद बोला--/पिता जी, प्राप पागल चे तही होय हा
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