प्रभात कुमार मुखर्जी की कहानियाँ | Prabhat Kumar Mukherjee Ki Kahaniyan

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Prabhat Kumar Mukherjee Ki Kahaniyan by मदनलाल जैन - Madanlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देवी ७ पहले पहल दया कौ नीद खुली। उसने कककोरकर उम्ता को जगा दिया । कालीकिकर ने फिर आवाज दी--उमा 1 उनकी झावाज कुछ काप रही थी, मानो वह बदल गई हो 1 यह उ हीका कठस्वर है यह सेडी मुश्किल से समझ में आया। इतने सबैरे पिता जी तो कभी बुलाते नही, और आज उनकी आवाज ऐसी कैसे है ? तो क्या सचमुच लल्ला को कुछ हा #न्रमा गया है १ उमाप्रसाद ने उठकर चटपट दरवाजा खोल दिया 1 उसने देखा क्रि पिता जी रक्तवण का कौपेय वस्त्र पहन हैं, कंधे पर नामावली का उत्तरीय है भले म रुद्राक्ष की माला है। यह क्‍या ? इतने सबेरे उनका पूजा कर भेप कया २ और दिन तो गमा स्नान क्सन के बाद वे पूजा के बस्तर पहनते हैं। मूहृत भर मे ये विचार उमाप्रमाद के मस्तिष्क म उठ सड़े हुए । दरवाजा खोलते ही कालीकिकर ने पुत्र से पूछा--/बटा, छाटी यहू कहां है ? * स्वर पहले को तरह बाप रहा था। उमाप्रसाद ने कमरे मे चारा तरफ़ देखा । दया विछीवा छोडकर बुद्ध दूरी पर युमचुम खडी थी । कालीक्कर ने भी उसी तरफ देखा। बट को देखते ही, पास গাল उसके चरणा में साप्टाग नमस्कार क्या 1 उमाप्रसाद विस्मय के मार भिक्दा हो गया। दयामयी ससुर के इस श्रद्‌ सुत भ्राचरण को देखकर चुपचाप निश्पद खडी रही 1 प्रणाप्त करने के वाद कालोकिक्र बौले--माँ, मेरा जम साथक हो गया । लेकिन इतने दिव क्या ,नही वताया यी; ^ ` > उमाप्रस्ताद बोला--/पिता जी पिता जो 1२%... .. ५ + कालीक्षकिर बोले--“बेट। इह प्रणाम करो ('छऊ ~ ই उमाप्रसाद बोला--/पिता जी, प्राप पागल चे तही होय हा




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