भारत में मुद्रा का विकास | Bharat Ki Mudra Ka Vikash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अवध विहारी मिश्र - Awadh Vihari Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय २
मोद्रिक मान
मुद्रा का प्रयोग धीरे-धीरे हमारे देनिक जीवन में सभी प्रकार की
बस्तुओ और सेवाओ का मूल्य मापने के काम आने लगा। अत यह अति
आवश्यक हो गया कि मुद्रा मूल्यवान् धातु की बनायी जाय जो सभी को
मान्य हो। सोना अथवा चॉदी ही इस योग्य माने गये कि इनकी मुद्राएँ
सर्वेमान्य हो। इस प्रकार किसी देश ने एक धातु की मुद्रा प्रचलित की
और किसी ने दूसरी धातु की मुद्रा का प्रथोग किया। सोने और चॉदी
दोनो की मुद्राएँ प्रयोग मे छायी गयी। कही-कही दो या दो से अधिक
धात्ओ को मिलाकर मिश्रित धातु की मुद्रा भा प्रयोग मे आयी । बाद में
चत्र-मुद्रा का प्रयोग बहुत व्यापक हो गया।
मुद्रा-पद्धति देश की आर्थिक परिस्थितियों और देश-वासियो की
आवश्यकताओ के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है। एक धातु वाली प्रणाली
में एक ही धातु की प्रमुख मुद्रा देश की समस्त वस्तुओ और सेवाओं का
मूल्याकन करती है। अन्य प्रकार की मुद्राएँ उसी एक मुद्रा के'मूल्य से
सम्बन्धित रहती है। एक धातुवाद मे निम्नलिखित तीन विशेषताएँ
होती है।
(१) एक ही मुद्रा देश की प्रमुख मुद्रा हो जो असीमित संख्या में
प्रयोग मे लायी जा सकती हो।
(२) थुद्रा की ढलाई स्वतन्त्र रूप से हो सकती हो, अर्थात् कोई
भी नागरिक उस धातु से सरकारी टकसाल मे मुद्रा बतवा सके |
(३) अन्य सभी प्रकार की मुद्राएँ साकेतिक मुद्राएँ मानी जायें जिन्हें
किसी भी समय प्रमुख मुद्रा मे परिणित किया जा सके।
भारतवषं मे, १८९३ ई० के पूवे देश की प्रमुख मुद्रा चाँदी का रुपया
User Reviews
No Reviews | Add Yours...