ग्राम सुधार | Gram-sudhar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
सारांश यह कि जब तक हम छोंग ग्रामीण दशा न
सुधारेंगे और देहाती भाइयों को अपने बराबरी का नहीं बना
कहेंगे, तब तक हम परतंत्रता से, कदापि मुक्त नहीं हो सकते ।
यह ध्रुव है, सत्य है, अटक है। बिना आम-सुधार के
तथा म्ामसंगठन के हमारा स्वाततव्य-युद्ध सफर नहीं हो
सकता । यही कारण है ॐ इन दिने प्राम-युधारके ङ्प
चारों ओर से आवाज .आ रही । निना आम-गठन के हमारी
गाड़ी अब आगे नहीं बढ़ सकेगी । हर्ष का विषय है कि अब
बड़े लोगों की दृष्टि छोटों की दशा पर पड़ी है ।
ग्राम-सुधार को आबश्यकता
भारतवर्ष में अधिक संख्या गांवों की है । शहर और कस्बे
यहां उठने नहीं हैं, जितने कि दूसरे देशों में हैं | हमारा देश तो
गांवों ही का देश है। यह कृषि-प्रधान देश है। यहां सिर्फ
२३१६ शहर हैं। जिनमें ३,२०,७५,२७६ मनुष्य रहते हैं,
परन्तु ६,८५,६६५ गांव हैं, जिनमें २८,६०१, ६७, २०४
गरीब देहाती मनुष्य निवास करते है । अर्थीत् फी सेकड़ा ९०
मनुष्य गांवों में रहते हैं । इससे कह जा सकता है कि भारत
का सच्चा रूप तो गांव और गांव के रहने वाले हैं, और दुःख
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